माखन चोर कृष्ण / Makhan Chor Krishn |
जमुना
के तट नटखट मो सों अटकत
झटकत
मटकत गैल अटकावै है
मैं
जो कहों गुप-चुप माखन तू खाय लै तौ
माखन न खावै ग्वाल - बालन बुलावै है
ग्वाल-बाल
सङ्ग लावै गगरी छुड़ावै फिर
खाय
औ खवाय, ब्रज - रज में मिलावै है
तीन
लोक स्वामी जा के ताईं वा के ताईं होय
मेरे ताईं
चोर - मेरौ माखन चुरावै है
कृष्ण विराट स्वरूप / Krishn Virat Swarup |
लल्ला बन जाय और हल्ला हू मचावै फिर
खेलत-खेलत चौका बीच घुस आवै है
डाँट
औ डपट मो सों घर के करावै काम
ननदी
बनै तौ कबू सास बन जावै है
बन कें देवर मोहि दिखावै तेवर कबू
बन कें ससुर मो पै रौब हू जमावै है
ग्वाला बन गैया दुहै, गैया बन दूध देय
दूध बन मेरे घट भीतर समावै है
चित चोर कृष्ण / Chit Chor Krishn |
कोई चोर आता है तो कपड़े चुराये और
कोई-कोई चोर अन्न-धन को चुराता है
ज़र को चुराये, कोई ज़मीन चुराये, कोई
हक़ को चुरा के बड़ा कष्ट पहुँचाता है
दुनिया ने देखे कई तरह के चोर, किन्तु
चोर ये अनोखा मेरे दिल को लुभाता है
माखन चुराने के बहाने आये श्याम और
मन को चुरा के मालामाल कर जाता है
माना कि ज़माना तेरे रूप का दीवाना, पर
मैं ने तो ये जाना – श्याम – चोरी तेरा काम है
निठुर,
निगोड़े, कपटी, छली,
लबार, ढीठ
दिलों को दुखाना तेरा काम सुबोशाम है
जाने कैसे नाथा होगा ज़हरीला नाग - तू ने -
कपड़े चुराये – तेरा चर्चा ये आम है
यशोदा का प्यारा होगा,
नन्द का दुलारा होगा
राधा से तू हारा – रणछोड़ तेरा नाम है
ये छन्द इस मुखड़े और अन्तरे के साथ गाये जाते हैं
मुखड़ा:
क्या रूप सलौना है जग जिस का है दीवाना
कहीं नज़र न लग जाये मेरा श्याम है मस्ताना
अन्तरा:
है चोर बड़ा छलिया - कपटी है काला है
झूठा भी है लेकिन - सच्चा दिलवाला है
[यहाँ बीच में छन्द गाये जाते हैं]
कोई चोर अगर ऐसा - देखा हो तो बतलाना
कहीं नज़र न लग जाये मेरा श्याम है मस्ताना
सभी साहित्य रसिकों को कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाइयाँ
: नवीन सी. चतुर्वेदी
क्या बात हैं भाईसाहब, मजा आ गया !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंmera shyam hai mastana.janmashtami ki badhai sir
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्यारी सी रचना सर जी..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये :-)
अहा, रसभरी रचना पढ़ने में आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंग्वाला बन गैया दुहै गैया बन दूध देय
जवाब देंहटाएंदूध बन मेरे घट भीतर समावै है
वाह क्या बात है | अद्भुत कल्पना ....
घनाक्षरियों की इस पुष्प-वर्षा से मनमही भीग गयी, भाईजी. अद्भुत संयोजन !
जवाब देंहटाएंसंगीत और काव्य का मनोहारी सम्मिश्रण प्रस्तुत हुआ है ! वाह !
अपने कन्हैया की अष्टमी की शुभ-शुभ चित्तांगन में बरसे.. .
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
बहुत ही सुन्दर...जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत ही सुन्दर..
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