ग़ज़ल - ख़ुशबू है सहमी सहमी सी, गुल भी उदास है - देवमणि पाण्डेय

 


ख़ुशबू है सहमी सहमी सीगुल भी उदास है 

गुम है किसी ख़याल में लड़की उदास है

 

दो चार पल ठहर के जो बादल चले गए

बारिश के इंतज़ार में मिट्टी उदास है

 

मोबाइलों की क़ैद में बचपन को देखकर

फूलों के दरमियान भी तितली उदास है

 

इंसान की तलब की कोई इंतिहा नहीं

सबकुछ है उसके पास में फिरभी उदास है

 

रोशन था कोई चेहरा कभी उसके  दरमियां

उससे बिछड़ के आज भी खिड़की उदास है

 

तुम जब गए तो यूं हुआ मौसम बदल गया

अब क्या बताएं ज़िन्दगी कितनी उदास है


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