कृष्ण के छन्द
आज़ कुछ फुटकर छन्द। पहले तीन दुर्मिल सवैया :-
आज़ कुछ फुटकर छन्द। पहले तीन दुर्मिल सवैया :-
मन की सुन के मन मीत बने तब कैसे कहें तुम हो
बहरे।
पर बात का उत्तर देते नहीं यही बात हिया हलकान
करे।
सच में तुमको दिखते नहीं क्या अपने भगतों के
बुझे चहरे।
दिखते हैं तो मौन लगाए हो क्यूँ, जगदीश तो वो है जो पीर हरे।।
नव भाँति की भक्ति सुनी तो लगा इस जैसा जहान में
तत्व नहीं।
जसुधा की कराह सुनी तो लगा तुमरे दिल में अपनत्व
नहीं।
तुम ही कहिये घन की गति क्या उस में यदि होय घनत्व
नहीं।