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सवैया, घनाक्षरी, दोहा, सोरठा

कृष्ण के छन्द

आज़ कुछ फुटकर छन्द। पहले तीन दुर्मिल सवैया :-


मन की सुन के मन मीत बने तब कैसे कहें तुम हो बहरे।
पर बात का उत्तर देते नहीं यही बात हिया हलकान करे।
सच में तुमको दिखते नहीं क्या अपने भगतों के बुझे चहरे।
दिखते हैं तो मौन लगाए हो क्यूँ, जगदीश तो वो है जो पीर हरे।।

नव भाँति की भक्ति सुनी तो लगा इस जैसा जहान में तत्व नहीं।
जसुधा की कराह सुनी तो लगा तुमरे दिल में अपनत्व नहीं।
तुम ही कहिये घन की गति क्या उस में यदि होय घनत्व नहीं। 

मेरा श्याम है मस्ताना - नवीन


माखन चोर कृष्ण / Makhan Chor Krishn
जमुना के तट नटखट मो सों अटकत
झटकत मटकत गैल अटकावै है

मैं जो कहों गुप-चुप माखन तू खाय लै तौ
माखन न खावै ग्वाल - बालन बुलावै है

ग्वाल-बाल सङ्ग लावै गगरी छुड़ावै फिर
खाय औ खवाय, ब्रज - रज में मिलावै है

तीन लोक स्वामी जा के ताईं वा के ताईं होय
मेरे ताईं चोर - मेरौ माखन चुरावै है


कृष्ण विराट स्वरूप / Krishn Virat Swarup

लल्ला बन जाय और हल्ला हू मचावै फिर
खेलत-खेलत चौका बीच घुस आवै है

डाँट औ डपट मो सों घर के करावै काम
ननदी बनै तौ कबू सास बन जावै है

बन कें देवर मोहि दिखावै तेवर कबू
बन कें ससुर मो पै रौब हू जमावै है

ग्वाला बन गैया दुहै, गैया बन दूध देय
दूध बन मेरे घट भीतर समावै है 


चित चोर कृष्ण / Chit Chor Krishn

कोई चोर आता है तो कपड़े चुराये और
कोई-कोई चोर अन्न-धन को चुराता है

ज़र को चुराये, कोई ज़मीन चुराये, कोई
हक़ को चुरा के बड़ा कष्ट पहुँचाता है

दुनिया ने देखे कई तरह के चोर, किन्तु
चोर ये अनोखा मेरे दिल को लुभाता है

माखन चुराने के बहाने आये श्याम और
मन को चुरा के मालामाल कर जाता है



माना कि ज़माना तेरे रूप का दीवाना, पर
मैं ने तो ये जाना – श्याम – चोरी तेरा काम है

निठुर, निगोड़े, कपटी, छली, लबार, ढीठ
दिलों को दुखाना तेरा काम सुबोशाम है

जाने कैसे नाथा होगा ज़हरीला नाग - तू ने -
कपड़े चुराये – तेरा चर्चा ये आम है

यशोदा का प्यारा होगा, नन्द का दुलारा होगा
राधा से तू हारा – रणछोड़ तेरा नाम है 



ये छन्द इस मुखड़े और अन्तरे के साथ गाये जाते हैं

मुखड़ा:
क्या रूप सलौना है जग जिस का है दीवाना
कहीं नज़र न लग जाये मेरा श्याम है मस्ताना

अन्तरा:
है चोर बड़ा छलिया - कपटी है काला है
झूठा भी है लेकिन - सच्चा दिलवाला है 

[यहाँ बीच में छन्द गाये जाते हैं]

कोई चोर अगर ऐसा - देखा हो तो बतलाना
कहीं नज़र न लग जाये मेरा श्याम है मस्ताना

सभी साहित्य रसिकों को कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाइयाँ


: नवीन सी. चतुर्वेदी

कृष्ण के छंद

उँगली पे उठाय लिया गिरिराज, प्रबुद्ध, प्रवीण प्रशासक हो। 
तुम कालिय नाग के नाथनहार  - सचेतक, तत्व-विचारक हो।
कुबजा अरु द्रौपदि लाज रखी - तुम सत्य समाज सुधारक हो।
तुम ही तुम ही तुम ही तुम ही तुम ही तुम ही अधिनायक हो।।
    [दुर्मिल सवैया]

प्रेम का पाठ पढ़ाया हमें अरु भक्ति का भाव सिखाते रहे हो।
जीवन की महिमा हमको मुरली की धुनों में सुनाते रहे हो।
सभ्य 'नवीन' समाज बने इस कारण चीर चुराते रहे हो।
गौ-कुल के हित साधन को खुद माखन चोर कहाते रहे हो॥
[मत्तगयन्द सवैया]

माखन से धन को भी कमाएँ कमाल का मन्त्र सिखाया हमें।
कंस से लोहा लिया तुमने जनतंत्र का मन्त्र सुझाया हमें।
वक़्त के साथ चले हर वक़्त यों वक़्त का मोल बताया हमें।
प्रेम सिवाय विकल्प नहीं यह पाठ तुम्हीं ने पढ़ाया हमें॥
 [मालिनी सवैया]

सखियों के सखा गउओं के गुपाल गुवालों के मीत कहाते रहे।
ललिता के मनोहर जाम्बुवती सँग भी तुम रास रचाते रहे।
सब से सब की सब भाँति सुचारू सदैव 'नवीन' निभाते रहे।
समता के लिए तुम जन्म लिया समभाव की ज्योति जगाते रहे॥
[दुर्मिल सवैया]