वो
सुन्दर थी और सुन्दर नहीं भी थी। मतलब वो अपने दिमाग से तेज तर्रार, स्वस्थ,
प्रतिभाशाली युवती थी लेकिन शारीरिक सौन्दर्य के मापन पर औसत थी। न तो उसके गुलाबी
रसभरे होठ थे, न काले-काले मेघों की तरह लहराते बाल, न कजरारी आँखें न उन्नत उभार।
लेकिन इन सांसारिक छद्म कमियों के बावजूद वो एक हवा का झोंका थी जिसकी खुशबू
सूँघते ही मुझे अच्छा लगा था। वो पहली बार मुझे अपने ऑफिस में मिली थी। मिली कहाँ
थी, ये कह सकती हूँ कि मैं खुद ही उससे मिलने रिसेप्शन पर पहुँची थी। हुआ कुछ
यूँ था कि हमारे अखबार के दफ्तर में वो किसी से मिलने आई थी लेकिन जिन महोदय से
मिलना था उन्होंने उस दिन ऑफिस आने की जहमत नहीं उठाई और न लड़की को ये बताना
जरूरी समझा कि वो ऑफिस आने वाले नहीं हैं। तय बातचीत के अनुसार लड़की ऑफिस पहुँची
और रिसेप्शनिस्ट से उन महोदय से मिलने की इच्छा जताई। रिसेप्शनिस्ट के ये कहते ही
कि सर आफिस में नहीं हैं उसने महोदय को फोन मिला दिया। पता नहीं उधर से उन्होंने
क्या कहा था, लेकिन इधर लोहा गर्म हो चुका था। वो लड़की चीख-चीख कर उन्हें
धोखेबाज, झूठा, हरामी आदि बोले जा रही थी। कई कर्मचारी इकट्ठा हो गये थे। मैं भी
भागी-भागी वहाँ पहुँची थी ये जानने के लिये कि मामला क्या है। पहली झलक में मुझे
लगा कि वो किसी नौकरी या इंटर्न के लिये आई होगी और काम बनते न देखकर चीखना
चिल्लाना शुरू कर दिया है। मैंने इशारों में रिसेप्शनिस्ट से पूछा कि बात क्या है
तो उसने भी इशारों से बता दिया कि लड़की मेंटल टाइप है। मैं वापस अपनी सीट पर जाने
के लिये मुड़ी ही थी कि उसकी बातों ने मुझे कुछ देर और वहाँ रुकने के लिये मजबूर
कर दिया। मि. सत्यजीत मिश्रा, मैं तो आपको बहुत बड़ा पत्रकार समझती थी लेकिन आप तो
अव्वल दर्जे के हरामी निकले, अगर कुछ करना ही नहीं था तो लम्बी-लम्बी फेंक के मेरा
टाइम क्यों बर्बाद किया...लड़की हड़बड़ी में बोलकर फोन रख चुकी थी। मुझे लगा कि
जरूर कोई मसाला है, स्वाद लेने में हर्ज ही किया है और मसाला भी मेरे काबिल और बॉस
के खासमखास सत्यजीत का है तो मेरा इण्टेरेस्ट और भी बढ़ गया। मैंने फौरन लड़की के
पास जाकर लगभग डपटने वाले अंदाज में कहा - एक्सक्यूज मी, देखिये ये अखबार का दफ्तर
है और आपको इस तरह से हल्ला-गुल्ला करने की जरुरत नहीं है, अगर कोई शिकायत है या
किसी से कोई काम है तो उसे बताने का सभ्य और शांतिपूर्ण तरीका भी दुनिया में हमारे
पुरखों ने इजाद किया हुआ है।
उस लड़की ने मुझे खा जाने वाली
नज़रों से घूरा- अच्छा तो मुझे ये बताइये कि अगर लगातार कोई आपको मिन्नत करके
बुलाये, आपके सामने एड़ियां रगड़े कि आप एक बार मेरे ऑफिस आ
जाओ और आपके जाने के बाद वो आपको मिले ही न, फोन करने पर बद्तमीजी से बात करे तो
आप कौन सा सभ्य तरीका अपनायेंगी?
मुझे कोई जवाब देते नहीं बना तो
मैंने फौरन उसे अपने केबिन में आने का इशारा किया और तेज कदमों से आगे बढ़ गई।
बैठते ही मैंने उसकी तरफ पानी का गिलास बढ़ा दिया। उसने नो थैंक्स कहते हुये बेरुखी से मना कर
दिया। फिर मैंने बात आगे बढ़ाई - मैं प्राची शर्मा, पहले क्राइम बीट पर थी आजकल
फीचर पेज देखती हूँ। क्राइम सत्यजीत जी देखते हैं...
आप.... मैम आप प्राची शर्मा हो, आई
मीन कि आप ही हो जो... ओह माइ गॉड.. आई एम सो सॉरी कि... आधी आवाज उसके हलक में ही
घुट कर रह गई लेकिन चेहरे पर गुस्से की जगह एक उत्साह और खुशी ने दस्तक दे दी थी।
तभी चपरासी वैद्यनाथ चाय लेकर अंदर
आया, उसकी खोजी नजरों को देख कर मैं समझ गई कि बाहर से कुछ लोगों ने उसे भेजा होगा
ये पता लगाने के लिये कि अंदर क्या हो रहा है। वैद्यनाथ हमारे आफिस का सबसे बदतमीज
किस्म का यूनियनबाज चपरासी है इसलिये मैंने उसको इग्नोर करते हुये अपनी बात आगे
बढ़ाई- क्या नाम है तुम्हारा ?
जी रागिनी - वह अब सहज हो रही थी
मेरे साथ।
रागिनी एमएमएस एक फिल्म भी आई
है,,,,आपने देखी है क्या... मेरे कुछ बोलने से पहले ही वैद्यनाथ दाँत निपोरते और
चाय देते हुये फिकरा कस चुका था।
हाँ देखी है मैंने और नमकहराम,
नाजायज़ औलाद फिल्में भी आई थीं वो देखी है क्या तुमने, नहीं देखी तो जाकर देख
लेना- रागिनी ने वैद्यनाथ को जवाब दिया। वैद्यनाथ सिटपिटाया सा चाय रखकर बाहर निकल
गया।
वैद्यनाथ की बद्तमीजी के लिये मैंने
आई एम सॉरी रागिनी... कहना चाहा लेकिन मेरे मुँह से निकला वेलडन रागिनी। रागिनी
मुस्कुरा कर चाय पीने लगी। मैंने रागिनी पर नजर जमाते हुये बात को आगे बढ़ाने की
कोशिश की।
रागिनी, देखो मैं ये नहीं पुछूँगी
कि सत्यजीत से तुम्हारी क्या बात हुई, मैं सिर्फ इतना कहूँगी कि अगर तुम्हे मेरी
किसी सहायता की जरूरत हो तो कभी भी बिना किसी संकोच के मुझे याद करना।
रागिनी बहुत शांत भाव से बोली- मैम
मैं आज भी आपके सारे आर्टिकल्स जरूर पढ़ती हूँ, जब आप न्यूज चैनल में 'स्टॉप
द क्राइम ' शो करती थीं तबसे आपकी फैन हूँ। यू आर माई आइडियल
मैम, पता नहीं कैसे मैं सत्यजीत मिश्रा के पास चली गई, मुझे तो सीधे आपसे बात करनी
चाहिए थी इस बारे में।
किस बारे में- मैंने अचरज जताते
हुये पूछा।
रागिनी मेरी तरफ गौर से देखने लगी
शायद नजरों से यह तौलना चाह रही हो कि जो बात वो कहने जा रही है उसको मैं कितनी
संजीदगी से ले रही हूँ। उससे मेरी नजर जैसे ही मिली एक बार तो मुझे भी लगा रागिनी
कोई भारी भरकम बात कहने जा रही है और मैं सिर्फ सत्यजीत मिश्रा द्वारा अपनी बीट
छीन लिये जाने के कारण खुन्नस में पड़ी हूँ।
मैम मैं आपको एक बहुत खास बात बताने
जा रही हूँ लेकिन आप ये प्रॉमिस कीजिए कि इस न्यूज को किसी भी हालत में मैनेज नहीं
करेंगी - रागिनी जोश में आ गई थी।
व्हाट नॉनसेन्स रागिनी, न्यूज मैनेज
का क्या मतलब, यहाँ कोई न्यूज मैनेज नहीं होती - मैं
झल्ला गई, शायद मन ही मन खुद को तसल्ली देने लगी कि ऐसा कुछ होता नहीं है, जबकि
सैंकड़ों बार मेरी आँखों के सामने मेरी ही रिपोर्ट्स को मैनेज किया गया और मैं कुछ
नहीं कर पाई।
प्राची मैम आप नाराज मत होईये,
परहैप्स यू आर माई लास्ट होप, मेरी बात सुन लीजिये। मैम यहाँ जय माँ दुर्गा हॉस्टल
से लड़कियाँ सप्लाई होती हैं, शहर के नेताओं और अमीरजादों को... रागिनी बहुत धीमी
आवाज में बोली।
हम्म्म्म्म, मुझे पता है, मैंने कई
बार इसके बारे में रिपोर्ट छापी थी लेकिन पुलिस ने कुछ खास किया नहीं, वैसे तुम
क्यों इतनी परेशान हो रही हो, तुम भी उस हॉस्टल में रहती हो क्या? -
मुझे लगा था रागिनी कोई नई बात कहेगी लेकिन उसकी घिसी-पिटी पुरानी स्टोरी में कुछ
दम लगा नहीं तो मैं निराश सी हो गई।
नहीं, मैं नहीं रहती उस हॉस्टल में,
हाँ कभी-कभार जाती हूँ वहाँ। प्राची मैम आपके लिये ये पुरानी बात होगी या फिर किसी
न्यूज का हिस्सा, मेरे लिये न तो ये पुरानी बात है न इग्नोर करने लायक। इस गलत काम
को बंद करवाने में मुझे आपकी मदद चाहिए। प्लीज- रागिनी बौखला गई थी।
आवाज नीचे करो, बाहर लोग
सुनेंगे....और अगर वहाँ गलत काम होते हैं तो तुम क्यों जाती हो, इस बार पैसे नहीं
मिले या तुमने ज्यादा पैसे की फरमाईश कर दी - गुस्से में मैंने कई बेहूदा सवाल दाग
दिये।
क्योंकि जय माँ दुर्गा हॉस्टल मेरा
है, मेरा मतलब मेरे पापा का इसलिये मुझे वहाँ की सारी गलत-सही चीजें मालूम है,
अबतक डर के कारण चुप थी, इस काम में मेरा भाई भी मेरे पापा का साथ देता है...
मुझे डिटेल्स में बताओ, सब कुछ। मैं
तुम्हारी हेल्प करूँगी, आई प्रॉमिस- कहते हुये मैं अपनी चेयर से उठकर रागिनी के
पास गई और उसके कंधे को हल्के से थपकी दी। मुझे लग रहा था कि अब मेरे अंदर की
पत्रकार एक स्त्री में तब्दील हो रही है और मुझे दर्द के घेरे में लेने की, एक
स्त्री की पीड़ा को समझने की शक्ति दे रही है।
रागिनी धीमे-धीमे बताने लगी- करीब दो साल पहले मैं एक बार
पापा को बिना बताये यूँ ही हॉस्टल चली गई थी। बस इसलिये कि हॉस्टल और वहाँ की
लड़कियों को एक बार देख लूँ लेकिन वहाँ जाने पर मुझे वार्डन ने हॉस्टल में घुसने
से मना कर दिया। मैंने जब उसे ये बताया कि ये मेरा ही हॉस्टल है तब भी वो टस से मस
न हुई। गुस्से में मैंने पापा को फोन लगाया तो उन्होंने वार्डन से बात की और मुझे
अंदर जाने की इजाजत मिली। वहाँ सब कुछ अजीब सा लग रहा था, प्राची मैम। डरी सहमी
लड़कियाँ, अँधेरे और गंदे कमरे और सबसे ज्यादा मुझे अजीब ये लगा कि जब मैं वहाँ
पहुँची तो वहाँ एक-दो कमरे अंदर से लॉक थे और उसमें से लड़कों की आवाजें आ रही
थीं। मैंने जब वार्डन को बोला कि ये सब क्या हो रहा है तो उसने मुझे बुरे तरीके से
डाँटा और हॉस्टल से निकल जाने को कहा।
मैम, उस दिन मैं गुस्से और अपमान की
पीड़ा में जल उठी। घर आकर पापा को सारी बात बताई और ये भी कि वार्डन वहाँ गलत
कामों को बढ़ावा दे रही है लेकिन मेरे पापा बजाये नाराज होने के मुझसे बोले-
रागिनी तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो बाकी सब फिजूल बातों में न पड़ो। मैं सारा मैटर
सॉल्व कर लूँगा। लेकिन पता नहीं मुझे क्यों लग रहा था कि पापा मुझसे झूठ बोल रहे
हैं...
गुण्डों का सरदार है तुम्हारा बाप,
उसके खिलाफ जाओगी तो फिर घर में कैसे रहोगी। ये सब सोच लिया है या बस झण्डा उठाकर
क्रान्ति करने चल पड़ी- मैंने तीर छोड़ा, शायद मैं उसका रिएक्शन देखकर कन्फर्म
होना चाहती थी कि वो अपनी बात पर अड़ी रहेगी या रिश्ते-नाते की दुहाई देकर उसके घर
वाले उसे पीछे हटने पर मजबूर कर देंगे।
मुझे न तो ऐसे घर वालों की परवाह है
न अपने पापा की। जो इन्सान दूसरे की बेटियों से गंदा काम करवा कर पैसे बनाता है वो
अपनी बेटी को कबतक सुरक्षित रखेगा- रागिनी ने मुझे आश्वस्त किया हालाँकि ये बात
कहते कहते रागिनी की आँखें भीग चुकी थी।
तुम कुछ और भी बताना चाह रही हो
रागिनी या सिर्फ इतनी सी बात है- मैंने फिर पूछा।
कुछ लड़कियों को ब्लैकमेल कर उन्हें
ये सब करने के लिये मजबूर किया जा रहा है मैम।
ब्लैकमेलिंग किस बात की ?
अपनी पढ़ाई और कुछ दूसरे खर्चे पूरे
करने के लिये उनमें से कई ये काम वीकेंड में करती हैं, वार्डन ने मेरे पापा की मदद
से ये सब पता लगा लिया और अब उन्हें धमकी दी जा रही है कि वो मेरे पापा के लिये
काम करें- रागिनी एक ही साँस में बोल गई।
आर दे प्रॉस्टीट्यूट? -
मुझे झटका सा लगा।
प्रॉस्टीट्यूट, माइंड
योर लैंग्वेज मैम, कम से कम आप तो इस तरह मत बोलिये। अगर पेट की भूख मिटाने के
लिये, अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिये, सर छुपाने की एक जगह पाने के खर्चे पूरे करने
के लिये वो किसी की दैहिक जरूरतों को पूरा करके अपने लिये कुछ पैसे इकट्ठा भी करती
हैं तो वो प्रॉस्टीट्यूट हो गईं। और मेरे बाप जैसे लोगों
को आप क्या कहेंगी जो इस बात का फायदा उठा रहा है ?
रागिनी गुस्से में थी और मैं चुप
होकर उसकी बातें सुन रही थी।
तभी चाय का कप उठाने के बहाने
वैद्यनाथ एक बार फिर केबिन में दाखिल हुआ। रागिनी भी चुप हो गई, लेकिन वैद्यनाथ
अभी तक खुन्नस खाये था- खींसे निपोरता हुआ बोला- ये प्रॉस्टीट्यूट
क्या होता है मैडम। मैं उसे डाँटती इससे पहले ही रागिनी चिल्लाई- प्रॉस्टीट्यूट वो होती है जो तुझ जैसे हरामी के पिल्लों को जनती
है...
वैद्यनाथ मेरी तरफ मुखातिब हुआ
लेकिन मैंने उसे डपटते हुये कहा- वैद्यनाथ अभी बहुत जरूरी बात चल रही है और तुम
फौरन यहाँ से निकलो जब बुलाऊँ तब आना। वैद्यनाथ गुस्से में पैर पटकता हुआ चला गया।
हाँ रागिनी, गालियाँ देने में
एक्सपर्ट हो, गुड ।
मैम, वो लड़कियाँ प्रॉस्टीट्यूट
नहीं हैं, उनका अपना अस्तित्व है, वो मेरी दोस्त हैं, वो जय माँ दुर्गा हॉस्टल में
रहने वाली छात्राएं हैं, वो अपने माँ-बाप की बेटियाँ हैं, वो मेरे पापा के लिये
आसान सा टार्गेट हैं और आपके लिये एक मसालेदार खबर है.... वो सब कुछ हैं, बट दे आर
नॉट प्रॉस्टीट्यूट।
सॉरी, रागिनी, आय डोंट वॉन्ट टू
हर्ट यू- रागिनी की बात ने मुझे शर्मिन्दा कर दिया।
प्राची मैम, मैं चाहती हूँ कि उन
लड़कियों को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो और मेरे पापा का ये घिनौना काम भी बंद हो
जाये, आप प्लीज कुछ करो....
सत्यजीत को क्या-क्या बताया तुमने ?
अभी तक कुछ भी नहीं, उन्हें बस इतना
बताया था कि आपके लिये मेरे पास एक धमाकेदार खबर है, उसके बाद वो खबर जानने के
लिये मुझे बार-बार फोन मिलाकर आफिस बुला रहे थे और आज यहाँ आई तो खुद ही गायब
हैं....
हमममम- मैं मुस्कुराई।
तुम नहीं जानती रागिनी, ये सत्यजीत
तुम्हारे बाप के साथ गोटियाँ फिट कर रहा होगा, लेकिन तुम टेंशन मत लो जब तक वो कुछ
कर पायेगा हम अपना काम कर देंगे। कम ऑन लेट्स गो- रागिनी और मैं दोनों तेज कदमों
से बाहर निकले और बॉस के केबिन की तरफ मुड़ गये।
क्या हमलोग अंदर आ सकते हैं- मैंने
लगभग अंदर घुसकर ही पूछा।
अब तो तुम अंदर आ ही गई हो,
फोर्मेलिटी छोड़ो और बताओ क्या काम है प्राची- बॉस ने मुस्कुराते हुये पूछा।
सर ये रागिनी है, जय माँ दुर्गा
हॉस्टल के बारे में कुछ न्यूज है इसके पास और मैं चाहती हूँ कि आप मुझे परमीशन दे
कि वो न्यूज मैं हैंडिल करूँ ?
ओफ्फो, प्राची तुम भी न, तुम्हे पता
है न कि ये तुम्हारी बीट नहीं है, फिर क्यों बार-बार सत्यजीत के काम में अड़ंगा
डालने की कोशिश करती हो।
लेकिन सर ये रागिनी कह रही है कि
सत्यजीत.... मैंने रागिनी की तरफ देखते हुये कहा।
आई डोंट वान्ट टू लिसिन एनीथिंग,
नाऊ जस्ट लीव.... बॉस का पारा चढ़ गया।
मैं और रागिनी मुँह लटकाकर बाहर
निकले ही थे कि सत्यजीत सामने से मुस्कुराता हुआ आ रहा था।
अरे... रे... रागिनी जी आप यहाँ
हैं, प्राची मैडम से गपशप कर रही हैं, आईए बैठकर एक-एक कप कॉफी
पी जाये ।
रागिनी के कुछ बोलने से पहले ही
मैंने सत्यजीत को कैंटीन की तरफ खींच लिया- जरूर सत्यजीत, तुम जैसे दोस्तों के साथ
कॉफी भला कौन नहीं पीना चाहेगा।
कैंटीन में सत्यजीत बिल्कुल नॉर्मल
औऱ खुश दिख रहा था, लेकिन हम दोनों को आग लगी थी। मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने
अपना मुँह खोल ही दिया- तो सत्यजीत रागिनी की न्यूज कितने में
मैनेज की ?
रागिनी और सत्यजीत दोनों मेरी तरफ
ऐसे देख रहे थे जैसे उनके सामने बिल्कुल कुछ इंच की दूरी पर कोबरा साँप उन्हे
निगलने के लिये तैयार है।
देखो प्राची, मुझे इस तरह का मजाक
बिल्कुल पसंद नहीं है- सत्यजीत हकला रहा था।
मुझे इस तरह का मजाक तो पसंद है
लेकिन इस तरह की साजिश बिल्कुल पसंद नहीं है सत्यजीत, तुम्हारे लिये बेहतर यही
होगा कि तुम अपने क्रिमिनल माईंड को इस केस में मत लगाओ, नहीं तो तुम्हे याद
दिलाना पड़ेगा कि मैं कौन हूँ..... मैंने अपना आखिरी वार किया।
रागिनी के सामने तुम मेरी इमेज खराब
कर रही हो प्राची, मैं बॉस को बताऊँगा ये बात- कहते हुये सत्यजीत अपनी कॉफी वहीं
छोड़कर भाग निकला।
रागिनी मेरी तरफ टकटकी लगाये हुये
थी और मैं अपने कॉफी के मग से ऊपर नजर नहीं उठा पा रही थी।
मैं चलती हूँ मैम, आपने कोशिश की,
मुझे अच्छा लगा। मैं जानती हूँ आप कुछ न कुछ जरूर करोगी- रागिनी का विश्वास अब भी
मुझ पर बरकरार था।
हाँ रागिनी मैं पूरी कोशिश करूँगी,
तुम टेंशन मत लो और सुनो अब तुम अपने घर नहीं जाओ क्योंकि वहाँ शायद तुम्हारे लिये
कोई जगह नहीं होगी, ये रहा मेरे घर का पता, अभी घर पर मेरी माँ होंगी, तुम जाकर
वहाँ ठहरो, शाम को मैं आती हूँ फिर बात करती हूँ- अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए
मैंने उठकर रागिनी को गले से लगा लिया।
रागिनी के जाने के बाद मैं अपने
केबिन में आकर आगे की रणनीति पर विचार कर ही रही थी कि वैद्यनाथ हाजिर हो गया।
मैडम, बॉस आपको बुला रहे हैं ?
ठीक है मैं आती हूँ, तुम चलो।
इस बार बिना अभिवादन के मैं बॉस के
केबिन में घुस गई। अंदर सत्यजीत भी बैठा था।
बैठो प्राची- बॉस अभी भी गुस्से में
लग रहे थे।
मेरे बैठते ही सत्यजीत शुरू हो गया-
देखिये सर, वो बाहर की लड़की के सामने प्राची मेरी इज्जत उछाल रही है, मेरी तो
छोड़िये अखबार की साख का भी कोई ख्याल नहीं है इसको, कहती है मैंने कितने में
सेटिंग की...
सत्यजीत मेरा मुँह मत खुलवाओ, मुझे
सब पता है, तुम्हारी पूरी काली करतूतों का हिसाब-किताब रखा है मैंने- मैं चिल्लाई
बॉस ने दोनों को शांत करते हुये
टेबल पर जोर से मुक्का मारा- क्या है ये, दोनों को बच्चों की तरह लड़ते देख कर
मुझे शर्म आने लगी है... सत्यजीत तुम्हे कितनी बार समझाया है कि तुमसे पहले 'क्राइम' प्राची ही सम्भालती रही है उससे सलाह मशविरा लेकर काम किया करो और
प्राची, यार तुम भी हर छोटी-छोटी बात का बखेड़ा मत बनाओ.....
सर मैं बखेड़ा बना रही हूँ, मैंने
तो आपसे कहा ही है कि वो हॉस्टल वाला केस मुझे सौंप दीजिए, अगर बवाल न मचा दिया तो
फिर मेरा नाम बदल दीजिए...मुझे लगा बॉस पर मेरी बातें कुछ तो असर करेंगी लेकिन वो
घाघ कुछ अलग ही राग अलापने लगा।
प्राची, संपादन करते-करते बाल सफेद
होने को आये और तुम मुझे सिखाने लगी। अखबार चलाना खेल नहीं है, हर बात में बवाल,
समाजसेवा का ज़ज्बा अगर यही सब करना है तो कोई एनजीओ खोल लो....
सर ये रागिनी वाला मामला मुझे सॉल्व
करने दीजिए प्लीज- मैंने रिक्वेस्ट की।
सत्यजीत फिर भड़क उठा- तो फिर मेरा
होना न होना बराबर है। मलाई वाली खबरें तुम दबा लो और हम यहाँ बैठ के ....
उखाड़ें...
सत्यजीत, मैं बात कर रहा हूँ न, तुम
चुप करो- बॉस ने हल्की नाराजगी में सत्यजीत को डाँटा।
बॉस ने हाथ मलते हुये जोर से जम्हाई
ली- प्राची, क्यों सबके लिये परेशानी खड़ी करती रहती हो, सत्यजीत भी तो तुम्हारा
दोस्त ही है। चलो एक बीच का रास्ता निकालते हैं, क्राइम बीट का मामला है सत्यजीत
ही देखेगा इसे तो लेकिन मैं तुम्हारी बातों की भी कद्र करता हूँ इसलिये मामले से
जितना आयेगा उसमें 30 परसेंट तुम्हारा भी या फिर दो-तीन लाख अभी लेकर यही बात खत्म
कर दो....
सर, लेकिन इतनी बड़ी आसामी का सिर्फ
दो-तीन लाख... मैं कोई नौसिखिया तो हूँ नहीं मुझे भी पता है....
तभी तो कह रहा हूँ प्राची कि तुम
समझदार और काबिल हो मामले को खत्म कर दो, सत्यजीत कल तक पैसे प्राची को मिल जाने
चाहिए- बॉस ने ऐलान कर दिया।
जी जरूर सर, प्राची आई प्रॉमिस, कल
तुम्हारे एकाउंट में पैसे पहुँच जायेंगे, अब प्लीज यार मुस्कुरा दो और मुझे भी चैन
की साँस लेने दो- सत्यजीत जल्दी से बोला। ओके.... मैंने भी मुस्कुरा कर हाँ में
सिर हिला दिया।
कुछ देर पहले तीन उदास और खुनसाये
चेहरों को देख कर मौन साधने वाला बॉस का केबिन अब तीन हँसते हुये चेहरों को देखकर
अचम्भित हो रहा था। प्लाईवुड से बनी केबिन की दीवारें हमारे मतलबी, बनावटी चेहरों
पर चिपकी हँसी को झेलने के लिये मजबूर थीं। ठीक उसी वक्त वैद्यनाथ तीन कप कॉफी
लेकर अंदर दाखिल हुआ।
आज से तुम दोनों टेंशन खत्म करो,
यार चार दिन की जिन्दगी है, खुशी बाँटते हुये गुजार दो, क्या पता कल हमलोग फिर
कहाँ रहे, जब तक हैं तब तक मिल-जुल कर मजे करो- बॉस कॉफी उठाते हुये बोले। हम
दोनों ने 'जी सर' कहकर सहमति जताई।
शाम को घर पहुँचते ही मैंने रागिनी
को सब सच-सच बता दिया। वह अवाक् होकर मेरा चेहरा देखने लगी।
आप भी मैम, मैंने तो सोचा था कि आप
मेरा साथ देंगी- रागिनी रो रही थी।
रागिनी, दूर रहकर दुश्मन पर वार
करना बहुत मुश्किल होता है, सत्यजीत और बॉस ने सारी सेटिंग कर ली है, अब मेरे कुछ
करने से कुछ नहीं होगा। ज्यादा चीखने-चिल्लाने का मतलब है मुझे नौकरी से निकाल
दिया जायेगा... फिर क्या होगा, नई जगह पर भी यही हाल होना है, सब जगह ऐसे ही लोग
भरे पड़े हैं....। फिर....
फिर क्या, कल एकाउंट में कुछ पैसे आ
जायेंगे, तुम्हारे जुटाये कुछ सबूतों के बल पर तुम्हारे बाप को ब्लैकमेल कर उससे
भी पैसे उगाहेंगे और मौका देखते ही किसी छोटे अखबार में इन लोगों की करतूत का पूरा
पर्दाफाश करूँगी, इस बार इतनी तैयारी करूँगी कि तुम्हारा बाप बचेगा नहीं...मैंने
रागिनी के आँसू पोंछते हुये कहा।
फिर आपकी जॉब का क्या होगा मैम ?
फिर कही जॉब कर लेगी, इसे तो
बात-बात पर जॉब छोड़ने की आदत है- इस बार माँ ने मुझे प्यार भरी थपकी देते हुये
कहा। एक बार फिर से तीन मुस्कुराते हुये चेहरे थे। लेकिन इस बार मेरे घर की
चारदीवारी में खिलती हुई ये मासूम मुस्कुराहटें भविष्य का स्वप्न बुन रहे थे और ये
दीवारें हमारी हँसी में शामिल होकर हमें दुआएं दे रही थीं।
बहुत ही सुन्दर और सच बोलती हुई कहानी ...बहुत सही चित्रण,मैंने ऐसा होते देखा है... आप बधाई के पात्र हैं...
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