31 जुलाई 2014

पेङ, पर्यावरण और कागज – नवीन सी. चतुर्वेदी

कटते जा रहे हैं पेङ
पीढी दर पीढी
बढता जा रहा है धुआँ
सीढी दर सीढी
अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये,
चिन्तित है
काग़ज़ी समुदाय

हावी होता जा रहा है कम्प्यूटर,
दिन ब दिन,
फिर भी
समाप्त नहीं हुआ - महत्व,
काग़ज़ का अब तक

बावजूद इन्टरनेट के,
काग़ज़ आज भी प्रासंगिक है
नानी की चिठ्ठियों में,
दद्दू की वसीयत में
काग़ज़ ही होता है इस्तेमाल,
हर मोङ पर जिन्दगी के

परन्तु अब थकने भी लगा है काग़ज़
बिना वजह छपते छपते

काग़ज़ के अस्तितव के लिये
जितने जरूरी हैं
पेङ,
पर्यावरण,
आदि आदि,
उतना ही जरूरी है
उनका सदुपयोग
सकारण

अकारण नहीं

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

1 टिप्पणी:

  1. ज़माना एक तेरा इम्तिहान लेगा अभी
    दिये हैं तूने अभी इंतिहान कागज़ पर –प्रमोद तिवारी (कानपुर)
    सम्पादक साहब !! आपको साधुवाद !! इस रचना के लिये भी और साहित्यम की हर रचना के लिये –मयंक

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