तकलीफ़ों के बाद तनिक आराम है
तुम कहते हो गीतों से क्या काम है
गीतों का बादल मुझ को नहलाता है
स्वर का गुंजन घावों को सहलाता है
यह हर दुख में मेरा मन बहलाता है
मेरा जीना ही इस का परिणाम है
तुम कहते हो गीतों से क्या काम है
यही सोच कर तुम को भी हैरानी है
जो दुखियारा है मेरी पहिचानी है
सब से परिचित मेरी राम कहानी है
मेरे लिए यही पैसा है दाम है
तुम कहते हो गीतों से क्या काम है
भावुकता के वेश हजारों धरता हूँ
मधु-ऋतु सा लिख कर,
पतझर सा झरता हूँ
ध्यान लगा कर स्वर की पूजा करता हूँ
गीतों के मन्दिर में मेरा राम है
तुम कहते हो गीतों से क्या काम है
:- डा. राम मनोहर त्रिपाठी
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