बेच दो ईमान तुम,
दुनिया की दौलत लूट लो
मैं ग़रीबी में पाला ईमान केवल चाहता
हूँ
तुम धरा के फूल नभ के चाँद-तारे लूट
लो
मैं धरा की धूल का वरदान केवल चाहता
हूँ
ऐ विषैली प्यास वालो! तुम सदा
प्यासे रहोगे
खून तुम इन्सानियत का ही सदा पीते
रहोगे
मैं स्वयं जलती चिता हूँ –
आग अपनी ही पियूँगा
मैं चिता से चाँदनी का दान केवल
चाहता हूँ
चाहिये मेवा तुम्हें,
तुम ढोंग सेवा का रचाओ
झूठ के बाज़ार में दूकान तुम अपनी
सजाओ
बीन लो तिनके सभी तुम
हर सिसकती झोंपड़ी के
मैं तो टैंकों में छिपा तूफ़ान केवल
चाहता हूँ
तुम बुरे कामों से माँगो भीख ऊँचे
नाम की
मरघटों में भी सजाओ सेज तुम आराम की
राख़ बन कर किन्तु मैं तो मरघटों की
खाक से
प्रेम-मन्दिर का नया निर्माण केवल
चाहता हूँ
निर्बलों की लाश पर तुम
स्वार्थ को नङ्गा नचाओ
और दिन के रक्त से तुम
रात अपनी जगमगाओ
जिन आँसुओं से कृष्ण ने धोये सुदामा
के चरण
उन आँसुओं का मैं सबल
बलिदान केवल चाहता हूँ
:- नीलकण्ठ तिवारी
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