तुलसी पूजे कामिनी,
कैसा शान्त स्वभाव
रीति-काल का रूप है भक्ति-काल के
भाव
कैसी हुई महावरी,
उस कदम्ब की छाँव
जल में होती के हिलें,
मँहदी वाले पाँव
प्रियतम नयनों में बसे,
जब हों पलकें बन्द
जैसे – मोती सीप में;
कलियों में मकरन्द
मिला पुराने बक्स में,
आज तुम्हारा पत्र
यादों की शहनाइयाँ,
गूँज उठीं सर्वत्र
अधरों पर निश्छल हँसी,
तन की मादक लोच
तुलसी की चौपाइ में,
कालिदास की सोच
:- बी. के. शर्मा ‘शैदी’
मन बिरोध कुल जग शोध, खल भल करे सुबोध |
जवाब देंहटाएंतुलसी दास सुरग गये, अमरत लहे प्रबोध | |
भावार्थ : -- मन का विरोध कर कुल एवं जग को शुद्ध कर खा एवं भल दोनों को ही ज्ञानी कर तुलसी दास जी तो स्वर्ग सिधार गए उनका ज्ञान अमरत्व को प्राप्त हो गया ||