मैं ने देखा है धरती को बड़े पास से
केवल देखा नहीं देख कर परखा भी है
धरती जिस पर फूल बिलखते,
काँटे हँसते
मरुस्थलों के पैर पूजता है गंगाजल
मिट्टी के पुतलों से पर्वत टकराते
हैं
हरियाली पर कोड़े बरसाता दावानल
मैं ने देखा है धरती को बड़े पास से
केवल देखा नहीं देख कर परखा भी है
दुनिया जिस में शान्ति कफ़न बांधे
फिरती है
और अशान्ति पर चँवर डुलाता है सिन्हासन
दुनिया जिस में दुनिया की गोली से
पीड़ित
डोला करता रुग्ण अहिंसा का पद्मासन
मैं ने देखा है धरती को बड़े पास से
केवल देखा नहीं देख कर परखा भी है
जीवन जिस का सत्य सिसकता है कुटियों
में
और झूठ महलों में मौज़ उड़ाया करता
जीवन जिस का न्याय सड़ा करता जेलों में
और अन्य ख़ुशियों के दीप जलाया करता
मैं ने देखा है धरती को बड़े पास से
केवल देखा नहीं देख कर परखा भी है
जहाँ चाँदनी धोती है कलंक जीवन भर
और अमावस तारों से सम्मानित होती
जहाँ भटकते मोती-माणिक अँधियारे में
और कौयलों [coal] को प्रकाश की किरणें धोतीं
मैं ने देखा है धरती को बड़े पास से
केवल देखा नहीं देख कर परखा भी है
:- पुरुषोत्तम दुबे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.
विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.