प्यार का दीप किसी राधा ने बाला होगा - महीपाल

प्यार का दीप किसी राधा ने बाला होगा
दूर मीरा पे गया उस का उजाला होगा

वो महल की हो कथा या कि व्यथा कुटिया की
उन्हीं जल-थल हुई आँखों का हवाला होगा

तुमने कैसे ऐ मुसम्मात फटे आँचल में
दूध और दर्द का सैलाब सँभाला होगा

फट गया होगा हिमालय का कलेज़ा घुट कर
तब किसी हुक ने गङ्गा को निकाला होगा

चाँद का सौदा किया घर में अमावस कर ली
दोस्त! क्या चाँद के टुकड़ों से उजाला होगा

बुत की पायल जो हसीं तुमने तराशी महिपाल
उस में बजने का गुमाँ किस तरह डाला होगा

:- महीपाल

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22

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