वो भली थी, या
बुरी, अच्छी लगी
ज़िन्दगी, जैसी
मिली, अच्छी लगी
बोझ
दिल का, घुल के सारा, बह गया
आंसुओं
की वो नदी अच्छी लगी
चांदनी
का लुत्फ़ भी तब मिल सका
जब
चमकती धूप भी अच्छी लगी
जाग
उट्ठी ख़ुद से मिलने की लगन
आज
अपनी बेखुदी अच्छी लगी
सबको, सब
कुछ तो कभी मिलता नहीं
इसलिए
थोड़ी कमी अच्छी लगी
दोस्तों
की बेनियाज़ी देख कर
दुश्मनों
की बेरुखी अच्छी लगी
आ
गया अब जूझना हालात से
वक़्त
की पेचीदगी अच्छी लगी
ज़हन
में 'दानिश' उजाला छा
गया
इल्मो-फ़न
की रोशनी अच्छी लगी
:- दानिश भारती
बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 212
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें