यह मेरा अनुरागी मन
रस माँगा करता कलियों से
लय माँगा करता अलियों से
संकेतों से बोल माँगता
दिशा माँगता है गलियों से
जीवन का ले कर इकतारा
फिरता बन बादल आवारा
सुख-दुख के तारों को छू कर
गाता है बैरागी मन
यह मेरा अनुरागी मन
कहाँ किसी से माँगा वैभव
उस के हित है सब कुछ सम्भव
सदा विवशता का विष पी कर
भर लेता झोली में अनुभव
अपनी धुन में चलने वाला
परहित पल-पल जलने वाला
बिन माँगे दे देता सब कुछ
मेरा इतना त्यागी मन
यह मेरा अनुरागी मन
:- सरस्वती कुमार ‘दीपक’
सुन्दर गीत ..
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