31 जुलाई 2014

मस्तानी यादें - राजू


राजू भाई हमारे बचपन के साथी हैं। मथुरा से ले कर मुम्बई तक उन्हों ने अनेक बार यह कविता सुनाई होगी हमें। बहुत प्यारी कविता है। किस की है? यह उन्हें नहीं पता – मगर बड़े ही मस्ताने अंदाज़ में सुनाते हैं। आप भी पढ़िये

एक दिन मैं बालूसाई की सड़क पर
दौड़ लगा रहा था
आगे बढ़ा
मुझे शर्बत की नदी मिली
उस में
समोसे की नाव तैर रही थी
उस में बैठ कर
मैं ने नदी पार की
आगे बढ़ा
तो मुझे मिश्री का महल दिखाई पड़ा
उस की छत पर
बूँदी के लड्डू
तोप ताने हुये खड़े थे
मैं अन्दर गया
तो मुझे क्या दिखाई दिया
कि इमरती रानी
चमचम का तकिया लगाये
विश्राम कर रही थीं
उन्हों ने
जैसे ही मुझे देखा
बूँदी के लड्डुओं वाली सेना बुलवाई
और उस के हाथों
मुझे उठवा कर
रबड़ी की दलदल में फिकवा दिया
और मुझ पे
रसगुल्लों को तोपगोले दागे जाने लगे
बस तभी
आँख खुल गयी
बड़ा ही मीठा सपना था यार  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें