वेद-पुराण और
उपनिषदों का पीछा कर के
हाँ जी! हमने शेर कहे हैं - चरबा कर के
भव-सागर के तट-बन्धों से किनारा कर के
कब का सब कुछ त्याग चुके हम, दावा कर के
किसी ने हम को मुआफ़ किया और ये समझाया
हाथ नहीं लगना कुछ भी, मन मैला कर के
जिन का जलवा है, वोह तो छुप कर बैठी हैं
जिन का जलवा है, वोह तो छुप कर बैठी हैं
डाल और पत्ते झूम रहे हैं - साया कर के
देख के तुम को हम क्यों बन्द करेंगे आँखें
देख के तुम को हम क्यों बन्द करेंगे आँखें
हम तो उजाले ढूँढ रहे थे, अँधेरा कर के
दुनिया के मुँह लगने का अञ्ज़ाम हुआ यह
उलटा पाठ पढ़ा डाला है - सीधा कर के
हर काहू की ख़िदमत हम से हो न सकेगी
चाकर हैं हम राधारानी के चाकर के
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
चाकर हैं हम राधारानी के चाकर के--- सटीक...
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