ऐसे भक्तों की भीड़ आई है सहमे-सहमे सभी नज़ारे हैं
ठिठकी-ठिठकी सी सरयू की लहरें ख़ौफ़ खाये हुये किनारे हैं
चादरें राम-नाम की ओढ़े दोस्त खञ्ज़र लिये पधारे हैं
दोस्ती के दरख़्त मुरझाये हाथ में मुल्ला जी के आरे हैं
इन की आवाज़ में भरी तल्ख़ी उन की तक़रीर में शरारे हैं
इस तरफ़ हैं घृणा के व्यापारी उस तरफ़ नफ़रतों के मारे हैं
हर तरफ़ आँधियों का आलम है और गर्दिश में सब सितारे हैं
भूल कर भी न लोग कहते हैं तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
:- श्री हरि
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून [दुगुन]
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
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