कन्या का कौमार्य - उस का ही जिम्मा
नहीं।
सुनो गौर से आर्य! - ये हम पर भी
फ़र्ज़ है॥
हरिक सार का सार - दो बातों में है
निहित।
मधुकर की मनुहार - और कली का
उन्नयन॥
सच पर नहीं विवाद - किन्तु झूठ ये
भी नहीं।
हरिश्चन्द्र के बाद - सत्यवादिता कम
हुई॥
डीजल वाली नाव - जब से हम खेने लेगे।
मत्स्य-मनस के घाव - दिन-दूने बढ़ने
लगे॥
भरते हैं आलाप - मन-मृदंग सँग हर
सुबह।
घोड़ों की पदचाप - बायसिकिल की
घण्टियाँ॥
क्या बतलाऊँ यार - पहले हर दिन पर्व
था।
पर अब तो त्यौहार - भी लगते हैं बोझ से॥
वो अपना अवसाद - भला भूलते किस तरह।
बारह वर्षों बाद - जिन को लाक्षागृह
मिला॥
निष्कासन के तीर - ले कर सब तैयार हैं।लंका वाली पीर - कोई भी हरता नहीं॥
कैसे होती बन्द - पुरखों की छेड़ी
बहस।
हम बोले मकरन्द - वो पराग पर अड़
पड़े॥
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
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