31 जुलाई 2014

व्यंग्य - निमंत्रण से धन्य हुआ सुदामा - मधुवन दत्त चतुर्वेदी

सुषमा जी ने बुलाया था। प्रभु का कोई विशेष कार्य सौंपेंगी कदाचित । ब्राह्मणी नहीं चाहती थी सुदामा जाये। डपट दिया सुदामा ने -"धीरज धरम मित्र अरु नारी, आपद काल परखिये चारी । जानती नहीं क्या ? मित्र हूँ मित्र ने बुलाया है तो जाऊंगा अवश्य।"
-"मित्र ने तो राज प्रासाद में बुलाया नहीं आजतक आप चले हैं मित्रता निवाहने । मत जाओ स्वामी ! मुझे अनिष्ट की आशंका सता रही है ।"
-"व्यर्थ आशंका है तेरी भागवान । तू भी बहक रही है मूर्ख प्रजाजनों की तरह । अवतारी पुरुष का कार्य सिद्ध करने में कोई जोखिम नहीं हो सकती ।"
एक न चली बेचारी की । चला गया सुदामा ।
अत्यंत मृदुता के साथ सत्कार किया सुषमा जी ने । अति की मिठास से अरुचि तो हुई पर प्रभु कृपा का स्मरण करते ही तिरोहित हो गयी ।
-"प्रभु का क्या अभीष्ठ है ताई ? अकिंचन सुदामा क्या प्रयोजन सिद्ध करने के योग्य है ?"
-"तुम सुदामा बड़े अनुभवी भिक्षुक हो । प्रभु को तुम्हारे कौशल और अनुभव की आवश्यकता है । न तो नहीं कहोगे न ? यदि कार्य विशेष में सफल रहे तो कृतज्ञ राष्ट्र तुम्हें भिक्षुक-शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित करेगा ।"
-"अनुभव तो है पर ये कौशल समझ नहीं आया ताई । मैंने किसी विद्याश्रम में भिक्षा की शिक्षा तो ली नहीं है।"
-"कोई बात नहीं ।कुशलता का शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं होता । अपनी स्मृति जी को ही देखो । शिक्षा का पूर्ण प्रभार संभाल रही हैं न कुशलता से । कल कह रहीं थीं यदि सुदामा कार्य सिद्ध कर ले तो भिक्षाटन को पाठ्यक्रम में शामिल कर लेंगी ।भविष्य में राष्ट्र को योग्य भिक्षुकों की आवश्यकता भी है और फिर भिक्षावृत्ति भी तो वृत्ति है । अगली जनगणना में राष्ट्र के भिक्षुको को चिन्हित कर लेंगे । उन्हें बेरोजगारों की सूची से हटा दिया जायेगा। प्रभु की अगली सरकार आयेगी तब तक देश में उच्च शिक्षित भिक्षुओ की भरमार होगी । सुदामा , तुम प्रभु कार्य सिद्ध कर दो तो प्रभु से मैं तुम्हारी अगली पीढ़ी को भिक्षाटन की शिक्षा के लिए क्षात्रवृत्ति की शिफारिश कर दूंगी । और छात्रवृत्ति तुम्हारे ही नाम पर रखवा दूंगी ।"
सुदामा का मन व्यथित हुआ । पर मौन रहा ।कार्य पूछा ।
-" तुम न सुदामा ! कल जुमा अलविदा पर ईराक जाओ । वहां खलीफा अबू बकर अल बग़दादी मिलेंगे । बड़े नेक इन्सान हैं । तुम भिक्षुकों को तो मंदिर-मस्जिद घाट-मजार हर स्थान पर मांगने की कला में महारत होती है न ? तो तुम उनसे ईद की ईदी मांगना । नये नए खलीफा हैं । मना नहीं करेंगे ।कहना कि आपकी दरियादिली के चर्चे हिन्द के गली कूचों में गूँज रहे हैं । आपने हिंदी नर्सों को बाअदब रुखसत कर दिया था । इस बार ईद पर हमारे उन 41 हिन्दी  भाइयों को आज़ाद कर दीजिये जिन्हें आपके पराक्रमी योद्धाओं ने 45 दिन पहले बंधक बनाया था ।"
-"क्या ?? तो नर्से उन्होंने अपनी दरियादिली से लौटाई थीं ।" चोंक गया सुदामा ,"पर ताई आप तो प्रभु पराक्रम का सुपरिणाम कहती थीं । क्या मेरे प्रभु..." गला रुंध गया गरीब का । सुषमा जी ने अपने कर कमलो से जल पिलाया । पीठ थपथपाई ।
-" नहीं सुदामा नहीं ! पराक्रम नहीं, बल्कि उनके प्रताप का परिणाम था । उनकी कीर्ति पताका चतुर्दिक फहर रही है और फिर अवतारी पुरुष का क्या कहना । यहीं से उनकी मति फेर दी ।"
"तो फिर अब मति क्यों नहीं फेर रहे हैं प्रभु , ताई?"
-"तुम न सुदामा ! तुम प्रश्न बहुत करने लगे हो प्रजाजनों की भांति । भूल गए क्या ? क्या प्रभु इच्छा से दुर्योधन हठ त्याग कर पांडवो को हक न देता ? पर लोक में अपने भक्तों को सुयश देने के लिए प्रभु उनसे उद्यम कराते हैं । जीतते तो वही हैं श्रेय भक्त को मिलता है । यह कृपा है उनकी कि ये श्रेय तुम्हें दे रहे हैं ।"
सुदामा को पाप बोध हुआ । भक्ति में कमी आयी है , यह प्रभु कृपा की कमी के कारन ही हुआ होगा । बारम्बार प्रभु की छवि का स्मरण कर मन ही मन कोटि कोटि प्रणाम किये ।
-"मैं अवश्य जाऊंगा । ताई आप कहना प्रभु से , मैं अवश्य जाऊँगा । मैं जाकर अपने पूर्ण कौशल से वहां गिड़गिड़ा कर भिक्षा मांगूंगा । विश्व मेरे साथ-साथ मेरे राष्ट्र की भिक्षावृत्ति को इतिहास में स्वर्णाक्षरो से अंकित करेगा । हाँ यह प्रभु की ही कृपा से संभव है । प्रभु की जय हो !"
कहा सुदामा ने और भक्ति में मुदित चल दिया लचकदार चाल से ।
सुदामा स्वप्न देखता चला आ रहा था । आने वाले दिनों में 'भिक्षा राजनय' को राजनीति शास्त्र के पाठ्यक्रम में स्थान मिलेगा । लिखा जायेगा कि बिषय प्राचीन है परन्तु जनतान्त्रिक भारत में इसके प्रयोग का श्रेय सुषमा और सुदामा को जाता है । इन दोनों व्यक्तित्वों ने इस राजनय के सफल उपयोग से 41 अपहृत भारतीयों को ईराक के खूंख्वार आतंकी सगठन के कब्जे से 45 दिन बाद सकुशल-ससम्मान रिहा कराने में सफलता पाई थी । देव संस्कृति का भाग रहा है भिक्षा राजनय । देवराज इंद्र कभी दधीच से तो कभी कर्ण से कुछ न कुछ भीख मांगते ही रहे हैं । कार्य सिद्ध होना चाहिए । पराक्रम जब पस्त हो तो भिक्षा काम आती है । असुर संस्कृति भी इस का प्रयोग कर चुकी है । स्वयं दशानन वैदेही को हरने भिक्षुक रूप में ही गया था । इधर विश्वविध्यालयो में भिक्षाटन का पाठ्यक्रम प्रारंभ होते ही न केबल स्नातक और स्नातकोत्तर भिक्षुक मिलने लगेंगे आपितु डाक्टरेट की उपाधियाँ गले में लटकाकर भीख मांगने वालों की भी जमात तैयार हो लेगी जिन्हें समय समय पर विदेश मंत्रालय विशेष अभियानों में आमंत्रित किया करेगा । सुदामा अमर हो जायेगा ।
 ऐसे ही सुखद स्वप्न बुनता संवारता सुदामा आ पंहुचा अपनी मडैया पर ।
 ब्राह्मणी आग बबूला खड़ी थी द्वार पर ही ।
-"कितनी बार कहा है पर मानते ही नहीं है । बाबा रामदेव तक ने कहा । बाबाजीयों को पर नारियों से दूर रहना चाहिए । आप हैं कि सुषमा जी ने न्यौता दिया और जा पहुंचे । जानते भी है, मैं मरी जा रही थी चिंता में ।"
-"व्यर्थ चिंता थी तेरी कल्याणी । भारतीय संस्कृति के ध्वज वाहको की सरकार है । मातृवत परदारेषु मेरा आदर्श है तो वे सब भी नारियों का सम्मान करते हैं।"
-"खाक सम्मान करते हैं स्वामी । सोनिया जी बहु हैं तो विदेशी हैं और सानिया बेटी है तो भी विदेशी ? अगर सोनिया अब भी इटली की है तो सानिया अब भारत की क्यों नहीं ? पाखंडियों की बात मत करो स्वामी । ये बताइए कि क्यों बुलाया था ? ये बड़े लोग यूँ ही तो बुला नहीं सकते ।"
-"प्रभु-काज का गुरुतर और ऐतिहासिक महत्त्व का कार्य सोंपा है । आज रात्रि ही आकाश मार्ग से प्रस्थान करना है । मेरे झोला-पथारी शीघ्र ला ।"
-"पहले बताइए कार्य क्या है?
-"ईराक जा रहा हूँ । भिक्षा मांगने ।"
-"क्यों, भारत बर्ष में अकाल पड़ा है क्या?"
-"नहीं । यह राजनय है, भिक्षा राजनय । खलीफा अबू बकर अल बग़दादी से अपहृत भारतीयों की रिहाई की भीख मांग कर लाऊंगा । राष्ट्रहित का कार्य है ।"
-"नहीं । कतई नहीं । जाने का प्रश्न ही नहीं है । जाओगे तो तब जब मैं जाने दूंगी । ऐसे खूंख्वार नर संहारक से भिक्षा मांगने जाओगे । आत्महत्या करनी है तो यहीं कर लीजिये ।"
-"मुर्ख हो तुम कल्याणी । उदारमना और चरित्रवान है वो । भयभीत नर्सें भूखी प्यासी अस्पताल के तहखाने में छुपी पड़ीं थीं । उन्हीने उन्हें मुक्त कर प्रभु प्रताप से रिहा किया था । सुषमा जी ने बताया है , प्रभु यहीं से अपनी अलौकिक शक्तियों का प्रयोग कर उसे मेरे अनुनय को स्वीकार करने की प्रेरणा दे देंगे । मुझे तो श्रेय देना चाह रहे हैं । मैं तो निमित्तमात्र हूँ । अवतारी हैं न ।"
-"व्यर्थ बात मत करो स्वामी । सुना है बग़दादी ने गैर मुसलमानों पर उनके क्षेत्र में रहने पर धर्म-कर लगाया है । जाते ही आपसे धर्म-कर मांग लेगा । क्या है तुमपर जो दोगे उसे ? ऐसा करो , मुझे ले चलो । हरिश्चंद्र ने काशी में बेचीं थी , तुम करबला में बेच देना ।" कहकर विफर उठी ब्राह्मणी । आँखों से अश्रुधार बह रही थी । अंग अंग में कम्पन हो रहा था । आपा खो बैठी ।
-"इस्लाम के उस नए खलीफा से भीख मांगने भेज रहे हैं जो निर्मम है स्वयं अपने स्वधर्मी भिन्न मताबलाम्बियों तक के प्रति । वाह री सुषमा वाह ! तेरे सैनिक तो यहाँ रोजेदार मुसलमान के मुहं में रोटी ठूँसें और तू खलीफा से भीख मंगवाए गी । उन पराक्रमियों को क्यों नहीं भेज देती बग़दाद ? उन्हें ही भेज दे जो गोधरा भूलने पर मुजफ्फर नगर की याद दिला रहे हैं मुसलमानों को । साफ सुनलो स्वामी , आप नहीं जायेंगे । किंचित भी नहीं । मेरा सुहाग मिला है बस उजाड़ने को ?"

ब्राह्मणी ने आवेश में सिर दे मारा चौखट पर । अचेत हो गयी । रक्त स्राव तीव्र था । सुदामा की एक न चली ।अस्पताल लेकर दौड़ा , तब तक बग़दाद की फ्लाईट जा चुकी थी ।

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