घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते
दब कें रहनौ परौ दद्दा जो हते
बिन दिनन खूब ई मस्ती लूटी
हम सबन्ह के लिएँ बच्चा जो हते
आप के बिन कछू नीकौ न लगे
टोंट से लगतु एँ सीसा जो हते
चन्द बदरन नें हमें ढाँक दयो
और का करते चँदरमा जो हते
पेड़ तौ काट कें म्हाँ रोप दयौ
किन्तु जा पेड़ के पत्ता जो हते
पैठ पाए न महल के भीतर
बिप्र-छत्री और बनिया जो हते
देख सिच्छा कौ चमत्कार ‘नवीन’
ठाठ सूँ रहतु एँ मंगा जो हते
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[भाषा धर्म के अधिकतम निकट रहते हुये उपरोक्त गजल का भावार्थ]
[भाषा धर्म के अधिकतम निकट रहते हुये उपरोक्त गजल का भावार्थ]
घर की, हम, आँखों का सुरमा जो थे
दब के रहना पड़ा दद्दा जो थे
उन दिनों खूब ही मस्ती लूटी
हम सभी के लिये बच्चा जो थे
दब के रहना पड़ा दद्दा जो थे
उन दिनों खूब ही मस्ती लूटी
हम सभी के लिये बच्चा जो थे
आप के बिन ज़रा अच्छा न लगे
टोंट से लगते हैं शीशा जो थे
चन्द अब्रों [बादलों] नें हमें ढँक डाला
और क्या करते जी, चन्दा जो थे
पेड़ तौ काट कें वाँ रोप दिया
किन्तु इस पेड़ के पत्ता जो थे
पैठ पाए न महल के भीतर
बिप्र-छत्री और बनिया जो थे
देख शिक्षा का चमत्कार ‘नवीन’
ठाठ से रहते हैं मङ्गा जो थे
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22
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ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति 29-11-2013 चर्चा मंच-स्वयं को ही उपहार बना लें (चर्चा -1445) पर ।।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (29-11-2013) को स्वयं को ही उपहार बना लें (चर्चा -1446) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ग़ज़ल को मैं कहूं ग़ज़ल मुझको कहे
ReplyDeleteकुछ वो सुने कुछ मैं सुनूँ -
तेरे दिल में कुछ राहें बने ....
दिल पे रख कर हाथ , अपनी धड़कनें सुनते रहे
इस तरह जानां तेरे साथ हम चलते रहे
आज का उत्सव ग़ज़ल के नाम
http://www.parikalpnaa.com/2013/11/blog-post_29.html
जय हो..
ReplyDeleteकहा कहूं जा ग़ज़ल की बात ,
ReplyDeleteयाद आवें दद्दा अम्मा औ तात