19 नवंबर 2013

मीठे बोलन कूँ सदाचार समझ लेमतु एँ - नवीन

मीठे बोलन कूँ सदाचार समझ लेमतु एँ
लोग टीलेन कूँ कुहसार समझ लेमतु एँ

दूर अम्बर में कोऊ आँख लहू रोमतु ऐ
हम हिंयाँ बा कूँ चमत्कार समझ लेमतु एँ

कोऊ  बप्पार सूँ भेजतु ऐ बिचारन की फौज
हम हिंयाँ खुद कूँ कलाकार समझ लेमतु एँ

पैलें हर बात पे हम लोग झगर परतु हते
अब तौ बस रार कौ इसरार समझ लेमतु एँ

भूल कें हू कबू पैंजनिया कूँ पाजेब न बोल
सब की झनकार कूँ फनकार समझ लेमतु एँ

एक हू मौकौ गँबायौ न जखम दैबे कौ
आउ अब संग में उपचार समझ लेमतु एँ 

अपनी बातन कौ बतंगड़ न बनाऔ भैया
सार एक पल में समझदार समझ लेमतु एँ


मानकों के अधिकतम निकट रहते हुये भावार्थ-गजल

मीठे बोलों को सदाचार समझ लेते हैं
लोग टीलोंको भी कुहसार समझ लेते हैं

दूर अम्बर में चश्म लहू रोटी है
हम यहाँ उस को चमत्कार समझ लेते हैं

कोई उस पार से आता है तसव्वुर ले कर
हम यहाँ ख़ुद को कलाकार समझ लेते हैं

पहले हर बात पे हम लोग झगड़ पड़ते थे
अब तो बस रार का इसरार समझ लेते हैं

भूल के भी कभी पैंजनिया को पाजेब न बोल
किस की झनकार है फ़नकार समझ लेते हैं

एक दूजे को बहुत घाव दिये हैं हम ने

आओ अब साथ में उपचार समझ लेते हैं 



:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22
ब्रजभाषा गजल

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