10 नवंबर 2013

सूरते-ग़म सँवरने लगी है - नवीन

नया काम


सूरते-ग़म सँवरने लगी है। 
ख़ामुशी बात करने लगी है॥ 

जब भी आते हैं दिल तोड़ते हैं। 
नींद सपनों से डरने लगी है॥ 

तोड़ देती है रोज़ एक वादा। 
मौत भी अब मुकरने लगी है॥ 

कोई कैसे टिके आसमाँ पर। 
रौशनी पर कतरने लगी है॥ 

अब उभर आयेगी उन की सूरत। 
बेकली रंग भरने लगी है॥ 

आ रहा है कोई हम से मिलने। 
ये ख़बर तंग करने लगी है॥ 

भोर होने ही को है 'नवीन' अब। 
ओस अँखियों से झरने लगी है॥



*****  


ग़म की सूरत सँवरने लगी है
ख़ामुशी बात करने लगी है



अब उभर आयेगी उन की सूरत
बेकली रंग भरने लगी है



आ रहे हैं वो फिर हम से मिलने
ये ख़बर तंग करने लगी है



जब भी आते हैं दिल तोड़ते हैं
नींद सपनों से डरने लगी है



किस तरह हम टिकें इस फ़लक पर
रौशनी पर कतरने लगी है



तोड़ देती है रोज़ एक वादा
अब कज़ा भी मुकरने लगी है



भोर होने ही को है 'नवीन' अब
ओस अँखियों से झरने लगी है 
 


:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
फ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ा
212 212 212 2

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