एक सिक्के के
दो पहलू ...
हेड या टेल
बाज़ी इधर की
या उधर की
जीत इसकी या
उसकी
हैं तो साथ ही
बात अलग है-
कभी सीधा कभी
उल्टा
पर जुड़े हैं
इसकी खबर तुम्हें
भी है
मुझे भी है
....
शक्तिमेध यज्ञ
हो
या भूखे की आस
हम होते हैं
साथ
लक्ष्मी के पास...
लक्ष्मी का आह्वान
कर
उलूक सवारी पर
मूर्ख, लोभी, ज़रूरतमंद
करते हैं हमारा
ही स्वागत
क्या अग्नि में
भी पिघलाकर
वे हमें अलग
कर पाते हैं
....!!!
हर बार हमें
ही लेकर हाथों में वे करते हैं संकल्प
देकर बनते हैं
दानवीर
और समझ नहीं
पाते हमारी तस्वीर !
हमारी तदबीर
!
हम चाहें तो
बनाते हैं ईमारत
करते हैं धूल
धूसरित
क्षण में मासा
क्षण में तोला
है अपने ही हाथों
...
एक सिक्के के
हम दो पहलू
साथ साथ चलते
हैं
साथ साथ रहते
हैं
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समय दो खुद को
हम खुद से डरते
हैं
खुद से भागते
हैं
और जब तक यह
होता है
कोई किनारा नहीं
मिलता !
ज़िन्दगी के
हर पड़ाव पर
ऐसा होता है
और हम किसी के
साथ की
प्रतीक्षा करते
हैं !
गौर करो ...
निर्णय हर बार
हमारा अपना होता है
...
समाज , परिवार
यह सब हमारे
अन्दर की ग्रंथि हैं ...
जहाँ हम तैयार
नहीं होते
वहाँ समाज और
परिवार को रख देते
जहाँ हम तैयार
होते हैं
वहाँ मुड़कर
भी नहीं देखते
तब ना हमें डर
लगता है
ना परवाह होती
है
सबकुछ अपने हाथ
होता है
और हम बेतकल्लुफ
होकर कहते हैं
--- भगवान् हमारे
साथ है .........
भगवान् तो हमेशा
साथ होते हैं
जब हम डरते हैं
तब भी
जब हम नहीं डरते
तब भी
....
तो चलो समय दो
खुद को
स्वीकार करो
सत्य को
यानि खुद के
भय को
खुद की इच्छा
को
और खुद के निर्णय
को !!!
रश्मि प्रभा
भगवान् तो हमेशा साथ होते हैं
जवाब देंहटाएंजब हम डरते हैं तब भी
जब हम नहीं डरते तब भी
सशक्त भाव लिये उत्कृष्ट प्रस्तुति ... आभार
सिक्के के दो विपरीत पहलू ....पर दोनों साथ-साथ
जवाब देंहटाएंकभी सोचा न था इस बारे में
ये हमारा दोगलापन ही होता है कि जब चाहा परिवार और समाज की आड़ में असफलता की कालिख धोने बैठ गये और जो सफलता या स्वार्थ की बात आयी तो 'भगवान भरोसे' चल पड़े ....
http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ अंक ४१ शुक्रवारीय चौपाल में आपकी रचनाओ को शामिल किया गया हैं कृपया अव्लोकान हेतु पधारे ....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachnaayen
जवाब देंहटाएंउम्दा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
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