सरगम की धुन गढ़वे बारे साज हबा में उड़ रए एँ
पगडण्डिन पे चलबे बारे मिजाज हबा में उड़ रए एँ
रात अँधेरी, नील-गगन, चलते भए बादर, तेज हबा
बच्चा बोले पानी बारे जहाज हबा में उड़ रए एँ
दूर अकास में ल्हौरे-ल्हौरे तारेन की पंगत कूँ देख
ऐसौ लागत है जैसें पुखराज हबा में उड़ रए एँ
सच्ची बात तौ जे है पानी जैसौ बहनौ हो, लेकिन
माफी दीजो भैया सगरे समाज हबा में उड़ रए एँ
मन में आयौ माखनचोर कूँ माखन-मिसरी भोग धरूँ
बा दिन सूँ ही यार अनाज और प्याज हबा में उड़ रए एँ
और कहाँ टिकते भैया जी सब की काया सब के मन
महारानी धरती पे हैं महाराज हबा में उड़ रए एँ
अब तक के सगरे राजा-महाराजा आय कें देखौ खुद
प्रेम सबन कौ है सरताज और ताज हबा में उड़ रए एँ
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
मानकों के अधिकतम निकट रहते हुये भावार्थ ग़ज़ल
मानकों के अधिकतम निकट रहते हुये भावार्थ ग़ज़ल
सरगम की धुन गढ़ने वाले साज हवा में उड़ रए हैं
पगडण्डी पर चलने वाले मिजाज हवा में उड़ रए हैं
रात-अँधेरी, नील-गगन, चलते हुये बादल, तेज़-हवा
बच्चे बोले - पानी वाले जहाज हवा में उड़ रए हैं
दूर आकाश में छोटे-छोटे तारों की पंगत को देख
ऐसा लगता है जैसे - पुखराज हवा
में उड़ रए हैं
सच्ची बात तो ये है पानी जैसा बहना था, लेकिन
माफ़ी देना भाई, सारे समाज हवा में उड़ रए हैं
मन में आया माखनचोर को माखन-मिसरी भोग धरूँ
उस दिन ही से यार अनाज और प्याज हवा में उड़ रए हैं
और कहाँ टिकते भैया जी सब की काया सब के मन
महारानी धरती पर हैं, महाराज हवा में
उड़ रए हैं
अब तक के सारे राजा-महाराजा आओ, आ कर देखो ख़ुद
प्रेम सभी का है सरताज और ताज हवा में उड़ रए हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें