5 नवंबर 2013

दिलों से तो निकाला जा रहा हूँ

दिलों से तो निकाला जा रहा हूँ
ख़लाओं में तलाशा जा रहा हूँ



मैं ख़ुशबू से नहाना चाहता था
मगर मिट्टी में सनता जा रहा हूँ



तेरी नज़रों ने कुछ बोला था मुझ से
उसी ख़ातिर निभाता जा रहा हूँ



मैं अपने ज़ख़्म दिखलाऊँ तो कैसे
सलीक़े से घसीटा जा रहा हूँ



मेरी हस्ती मुकम्मल हो रही है
चराग़ों पर उँड़ेला जा रहा हूँ



क़ज़ा आई तो लौटा दिल बदन में
अकेला था - दुकेला जा रहा हूँ




नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे हजज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122

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