किसी
और में वो लचक न थी किसी और में वो झमक न थी।
जो
ठसक थी उस की अदाओं में किसी और में वो ठसक न थी॥
न
तो कम पड़ा था मेरा हुनर न तेरा जमाल भी कम पड़ा।
तेरा
हुस्न जिस से सँवारता मेरे हाथ में वो धनक न थी॥
फ़क़त
इस लिये ही ऐ दोसतो मैं समझ न पाया जूनून को।
मेरे
दिल में चाह तो थी मगर मेरी वहशतों में कसक न थी॥
ये
चमन ही अपना वुजूद है इसे छोड़ने की भी
सोच मत
नहीं
तो बताएँगे कल को क्या यहाँ गुल न थे कि महक न थी॥
मेरी
और उस की उड़ान में कोई मेल है ही नहीं ‘नवीन’।
मुझे
हर क़दम पै मलाल था और उसे कोई भी झिझक न थी॥
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाएलुन मुतफ़ाएलुन मुतफ़ाएलुन मुतफ़ाएलुन
11212 11212 11212 11212
क्या बात है..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब