7 नवंबर 2013

दिल चीज़ क्या है चाहिये तो जान लीजिये - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी [1751-1824]

दिल चीज़ क्या है चाहिये तो जान लीजिये
पर बात को भी मेरी ज़रा मान लीजिये

मरिये तड़प-तड़प के दिला क्या ज़ुरुर है
सरपर किसी की तेग़ का एहसान लीजिये
दिला – ऐ दिल, तेग़ – तलवार

आता है जी में चादरे-अब्रे-बहार को
ऐसी हवा में सर पे ज़रा तान लीजिये
चादरे-अब्रे-बहार – बहार रूपी बादल की चादर

मैं भी तो दोस्त दार तुम्हारा हूँ मेरी जाँ
मेरे भी हाथ से तो कभू पान लीजिये
 कभू – कभी कभार

कीजे शरीक हम को दिला भी, रवा नहीं –
यूँ आप ही आप लज़्ज़्ते-पैकान लीजिये
रवा – उचित, लज़्ज़्ते-पैकान – तीर का मज़ा, यहाँ आप ही आप को आपीआप की तरह पढ़ा जाना है

इस अपनी तंग चोली पे टुक रह्म कीजे जान
ख़म्याज़ा इस तरह से न हर आन लीजिये

गर क़ब्रे-कुश्तगाँ पे तुम आये हो तो मियाँ
अपने शहीदेनाज़ को पहिचान लीजिये
क़ब्रे-कुश्तगाँ – शहीदों की क़ब्र

बोसे का जो तुम्हारे गुनहगार हो मियाँ
लाज़िम है उस से बोसा ही तावान लीजिये
तावान – दण्ड स्वरूप

मुश्किल नहीं है यार कि फिर मिलना मुसहफ़ी
मरने की अपने जी में अगर ठान लीजिये

:- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

[1751-1824]

यह पोस्ट मेरे लिये महज़ एक पोस्ट न हो कर पूर्वजों के चरणों में एक श्रद्धा सुमन की तरह है। उस्ताज़ मुहतरम तुफ़ैल चतुर्वेदी साहब से मालूम हुआ कि हमारे [शायराना] ख़ानदान का शजरा [वंश-वृक्ष] तुफ़ैल साहब से ज़नाबे कृष्ण बिहारी 'नूर' साहब से ज़नाबे फ़ज़ल अब्बास नक़वी साहब ..... वग़ैरह वग़ैरह से होते हुये ज़नाबे मुसहफ़ी तक जाता है। मुसहफ़ी साहब ख़ुदा-ए-सुख़न मीर तक़ी मीर साहब के समकालीन थे। उपरोक्त ग़ज़ल उन की चर्चित ग़ज़लों में से एक है। इसी से मिलता जुलता मिसरा हम लोगों ने बहुत गुनगुनाया है 'दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये। बस एक बार मेरा कहा मान लीजिये॥ 


बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाएलातु  मुफ़ाईलु फ़ाएलुन
 221 2121 1221 212 

1 टिप्पणी:

  1. मुझे तो यही गाना याद आ रहा था इस गज़ल को पढते हुए ...
    बहुत ही लाजवाब शेर गढे हैं ... मज़ा ले रहा हूँ इन शेरों का ....

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