नया काम
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खसबुअन के बासतें खुद धूप गूगर ह्वै गए।
देख दुनिया हम हू अब तेरे बरब्बर ह्वै गए॥
अब न कोऊ चौंतरा लीपै न छींके टाँगत्वै।
कैसे-कैसे घर हते, सब ईंट-पत्थर ह्वै गए॥
एक बेरी साँच में घनश्याम नें बोल्यौ हो झूठ।
तब सों ही ऊधौ हमारे द्रग समन्दर ह्वै गए॥
जैसें तैसें आदमीयत कौ हुनर सीख्यौ मगर।
बन्दरन के राज में हम फिर सूँ बन्दर ह्वै गए॥
ऐसी अदभुत बागबानी कौन सों सीखे 'नवीन'।
ऐसे-ऐसे गुल खिलाए खेत बंजर ह्वै गए॥
लोमड़िन के राज में हम फिर सूँ बन्दर ह्वै गए
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खसबुअन के बासतें खुद धूप गूगर ह्वै गए।
देख दुनिया हम हू अब तेरे बरब्बर ह्वै गए॥
अब न कोऊ चौंतरा लीपै न छींके टाँगत्वै।
कैसे-कैसे घर हते, सब ईंट-पत्थर ह्वै गए॥
एक बेरी साँच में घनश्याम नें बोल्यौ हो झूठ।
तब सों ही ऊधौ हमारे द्रग समन्दर ह्वै गए॥
जैसें तैसें आदमीयत कौ हुनर सीख्यौ मगर।
बन्दरन के राज में हम फिर सूँ बन्दर ह्वै गए॥
ऐसी अदभुत बागबानी कौन सों सीखे 'नवीन'।
ऐसे-ऐसे गुल खिलाए खेत बंजर ह्वै गए॥
लोमड़िन के राज में हम फिर सूँ बन्दर ह्वै गए
ऐसे-ऐसे गुल खिलाए खेत ऊसर ह्वै गए
अब न कोऊ चौंतरा लीपै न छींके टाँगत्वै
कैसे-कैसे घर हते, सब ईंट-पत्थर ह्वै गए
जो हते जल्दी में बे सगरे तो बन बैठे कपूर
जो ठहरनौ चाहुंत्वे बे धूप-गूगर ह्वै गए
लोग खुद सूँ आमें, खामें फिर हमें गरियातु ऊ एँ
देख दुनिया हम हू अब तेरे बरब्बर ह्वै गए
एक बेरी साँच में घनश्याम नें बोल्यौ हो झूठ
तब सूँ ही ऊधौ हमारे द्रग समन्दर ह्वै गए
लोमड़िन के राज में हम फिर से बन्दर हो गए
ऐसे-ऐसे गुल खिलाए खेत ऊसर हो गए
अब न कोई चौंतरा [चबूतरा] लीपे न छींका ही धरे
कैसे-कैसे घर थे सारे ईंट-पत्थर हो गए
जो जो थे जल्दी में वो सारे तो बन बैठे कपूर
और ठहरना था जिन्हें वे धूप-गूगर हो गए
लोग ख़ुद आते हैं खा कर कोसते भी हमें
देख दुनिया हम भी अब तेरे बराबर हो गए
सच में बस एक बार ही घनश्याम ने बोला था झूठ
तब ही से ऊधौ हमारे द्रग समन्दर हो गए
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
2122 2122 2122 212
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