थे ख़ुद ही के हिसार में ।
सो लुट गये बहार में ।।
क्या आप भी ज़हीन थे ।
आ जाइये क़तार में ।।
नश्शा उतर गया तमाम ।
कुछ बात है उतार में ।।
गर तुम नहीं तो ग़म मिला ।
इतने नहीं हैं मार में ।।
लाखों में आप एक थे ।
अब भी हैं इक हज़ार में ।।
ये दिन भी देख ही लिया ।
पानी नहीं कछार में ।।
सारा शरीर खुल गया ।
झरने की एक धार में ।।
आवाज़ दीजिये किसे ।
इस रात के बुखार में ।।
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रजज मुसद्दस मखबून
मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन
2212 1212
क्या आप भी ज़हीन थे
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नश्शा उतर गया तमाम
कुछ बात है उतार में
बहुत अच्छे अशआर हैं |