निगोड़ी
धूप खा जाती है क्या-क्या
फ़लक
कङ्गाल है अब, पूछ लीजै
सहर
ने मुँह दिखाई में लिया क्या
फ़लक
– आसमान, सहर – सुबह
सब
इक बहरे-फ़ना के बुलबुले हैं
किसी
की इब्तिदा क्या इन्तिहा क्या
बहरे-फ़ना
– नश्वर समुद्र, इब्तिदा – आरम्भ, इन्तिहा – अन्त
जज़ीरे
सर उठा कर हँस रहे हैं
ज़रा
सोचो समन्दर कर सका क्या
जज़ीरा
– टापू
ख़िरद
इक नूर में ज़म हो रही है
झरोखा
आगही का खुल गया क्या
ख़िरद
– बुद्धि, नूर – उजाला / ज्ञान, ज़म होना – मिल जाना, आगही – ज्ञान / अगमचेती
तअल्लुक
आन पहुँचा खामुशी तक
“ यहाँ से बन्द है हर रास्ता क्या”
बहुत
शर्माओगे यह जान कर तुम
तुम्हारे
साथ ख्वाबों में किया क्या
उसे
ख़ुदकुश नहीं मज़बूर कहिये
बदल
देता वो दिल का फ़ैसला क्या
बरहना
था मैं इक शीशे के घर में
मेरा
क़िरदार कोई खोलता क्या
बरहना
– निर्वस्त्र के सन्दर्भ में
अजल
का खौफ़ तारी है अज़ल से
किसी
ने एक लम्हा भी जिया क्या
अजल
– मौत, अज़ल
– आदिकाल
मक़ीं
हो कर मुहाज़िर बन रहे हो
मियाँ, यकलख़्त
भेजा फिर गया क्या
मक़ीं
– मकान-मालिक, मुहाज़िर – शरणार्थी, यकलख़्त – अचानक
ख़ुदा
भी देखता है, ध्यान रखना
ख़ुदा
के नाम पर तुमने किया क्या
उठा
कर सर बहुत अब बोलता हूँ
मेरा
क़िरदार बौना हो गया क्या
:- मयङ्क अवस्थी
8765213905
बहरे हजज मुसद्दस महज़ूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मयंक भाई को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएं☆★☆★☆
जज़ीरे सर उठा कर हँस रहे हैं
ज़रा सोचो समन्दर कर सका क्या
वाह...वाऽह…! बेहतरीन शे'र !!
वैसे पूरी ग़ज़ल बेमिसाल है हर शे'र कोट करने को मन करता है...
इस शरारती शे'र को साथ ले जाना चाहूंगा-
बहुत शर्माओगे यह जान कर तुम
तुम्हारे साथ ख्वाबों में किया क्या
:)
जियो मयंक भाई !
सितारा एक भी बाकी बचा क्या
जवाब देंहटाएंनिगोड़ी धूप खा जाती है क्या-क्या
सब इक बहरे-फ़ना के बुलबुले हैं
किसी की इब्तिदा क्या इन्तिहा क्या
ख़िरद इक नूर में ज़म हो रही है
झरोखा आगही का खुल गया क्या
तअल्लुक आन पहुँचा खामुशी तक
“ यहाँ से बन्द है हर रास्ता क्या”
बहुत शर्माओगे यह जान कर तुम
तुम्हारे साथ ख्वाबों में किया क्या
बरहना था मैं इक शीशे के घर में
मेरा क़िरदार कोई खोलता क्या
अजल का खौफ़ तारी है अज़ल से
किसी ने एक लम्हा भी जिया क्या
ख़ुदा भी देखता है, ध्यान रखना
ख़ुदा के नाम पर तुमने किया क्या
उठा कर सर बहुत अब बोलता हूँ
मेरा क़िरदार बौना हो गया क्या
मयंक भाई पूरी ग़ज़ल लाजवाब है ....आपका शुरू से ही मद्दाह रहा हूँ ..... शायर क्लब से लेकर यहाँ तक के आपके सफर में मैंने इतना दरियादिल और नेक इंसान नहीं देखा है ..... खास तौर से आपका ये शेर मैं भी ले जा रहा हूँ कुछ शरारती अंदाज़ में लोगों को सुनाउंगा
बहुत शर्माओगे यह जान कर तुम
तुम्हारे साथ ख्वाबों में किया क्या
मयंक भाई जिंदाबाद ....... ज़िन्दाबाद
धर्मेन्द्र भाई !! बहुत बहुत आभार !! फिलहाल आपके " संकलन गज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर" का आनन्द ले रहा हूँ !!
जवाब देंहटाएंराजेन्द्र स्वर्णकार –भाई !! हम आपके इज़हार और आपके सुरीले गले के बहुत पुराने फैन हैं और जब आपका पस्न्दीदा साहित्यकार आपकी गज़ल को प्सन्द करें तो एक गहरी आश्वस्ति और सुख की अनुभूति होती है आपने इस ग़ज़ल को पसन्द किया ऐसी ही अनुभूति मुझे हो रही है !!! साभार –मयंक
जवाब देंहटाएंहादी साहब !! हम इक दूजे के इतने नज़दीक हैं कि मुझे अभिवादन की औपचारिकता भी भार लगती है –
जवाब देंहटाएंकिसी की आहटें दिल मे सदा महसूस करता हूँ
दयारे ग़ैर मे कोई शनासा बन के रहता है --
ये दुनिया मेरे लिये दयारे गैर सही लेकिन एक शनासा हादी जावेद मेरे दिल के इतना निकट है कि मुझे सम्झ नहीं आता कि वो मेरा आईना है या मैं उसकी परछाईं हूँ – मेरे भीतर अगर कोई अदीब या अदीब जैसा कुछ था तो उसे बाहर लाने का श्रेय हादी साहब को है – पत्थर से ज़वाइद बाहर निकल गया और मयंक अवस्थी को लोगों ने जाना तो हादी साहब के शाइर क्लब के कारन जाना !! मुझे जो प्रेम जो स्नह और जो सम्मान उन्होंने दिया जो मेरे कथित अपनों ने भी कभी नहीं दिया !!! इस ज़िन्दगी में इस शख़्स हादी जावेद की मेरे लिये एक बहुत विशेष अहमियत है – बहुत बहुत आभार –मयंक
हादी साहब !! हम इक दूजे के इतने नज़दीक हैं कि मुझे अभिवादन की औपचारिकता भी भार लगती है –
जवाब देंहटाएंकिसी की आहटें दिल मे सदा महसूस करता हूँ
दयारे ग़ैर मे कोई शनासा बन के रहता है --
ये दुनिया मेरे लिये दयारे गैर सही लेकिन एक शनासा हादी जावेद मेरे दिल के इतना निकट है कि मुझे सम्झ नहीं आता कि वो मेरा आईना है या मैं उसकी परछाईं हूँ – मेरे भीतर अगर कोई अदीब या अदीब जैसा कुछ था तो उसे बाहर लाने का श्रेय हादी साहब को है – पत्थर से ज़वाइद बाहर निकल गया और मयंक अवस्थी को लोगों ने जाना तो हादी साहब के शाइर क्लब के कारन जाना !! मुझे जो प्रेम जो स्नह और जो सम्मान उन्होंने दिया जो मेरे कथित अपनों ने भी कभी नहीं दिया !!! इस ज़िन्दगी में इस शख़्स हादी जावेद की मेरे लिये एक बहुत विशेष अहमियत है – बहुत बहुत आभार –मयंक
मयंक भाई
हटाएंआपने जो प्यार मुझे और शायर क्लब को दिया है उसका कर्ज ज़िन्दगी भर न उतार सकूंगा .....आप जैसे बड़े भाई का दुलार शायद ज़िन्दगी में हासिल न कर सकूँ... आपके इन अलफ़ाज़ ने मुझे बेहद जज्बाती कर दिया है .... मयंक भाई आपको बड़ा आपके संस्कारों ने किया है ...आपके अख्लाक ने किया है ..... आप वो शख्स हैं जो हमेशा दूसरों के काम आता है ....आपके अलफ़ाज़ ने कई लोगो को बड़ा बनाया है .... आप अपने लिए कम और दूसरों के लिए ज़्यादा जीते हैं .... आप मेरी ज़िन्दगी की ऐसी कड़ी हो जिसने मुझ पर अहसान किया है और अपनी मुहब्बत में गिरफ्तार किया है
ज़िन्दाबाद मयंक भाई ज़िन्दाबाद ..... हादी जावेद