tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post2117665118646388252..comments2024-03-22T11:27:03.707+05:30Comments on साहित्यम्: सितारा एक भी बाकी बचा क्या - मयङ्क अवस्थी www.navincchaturvedi.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-16951759864339674732014-05-14T02:40:00.753+05:302014-05-14T02:40:00.753+05:30मयंक भाई
आपने जो प्यार मुझे और शायर क्लब को दिया ...मयंक भाई <br />आपने जो प्यार मुझे और शायर क्लब को दिया है उसका कर्ज ज़िन्दगी भर न उतार सकूंगा .....आप जैसे बड़े भाई का दुलार शायद ज़िन्दगी में हासिल न कर सकूँ... आपके इन अलफ़ाज़ ने मुझे बेहद जज्बाती कर दिया है .... मयंक भाई आपको बड़ा आपके संस्कारों ने किया है ...आपके अख्लाक ने किया है ..... आप वो शख्स हैं जो हमेशा दूसरों के काम आता है ....आपके अलफ़ाज़ ने कई लोगो को बड़ा बनाया है .... आप अपने लिए Hadi Javedhttps://www.blogger.com/profile/14977680896918498806noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-59039762068098423672014-05-12T10:58:24.232+05:302014-05-12T10:58:24.232+05:30हादी साहब !! हम इक दूजे के इतने नज़दीक हैं कि मुझे ...हादी साहब !! हम इक दूजे के इतने नज़दीक हैं कि मुझे अभिवादन की औपचारिकता भी भार लगती है – <br />किसी की आहटें दिल मे सदा महसूस करता हूँ <br />दयारे ग़ैर मे कोई शनासा बन के रहता है -- <br />ये दुनिया मेरे लिये दयारे गैर सही लेकिन एक शनासा हादी जावेद मेरे दिल के इतना निकट है कि मुझे सम्झ नहीं आता कि वो मेरा आईना है या मैं उसकी परछाईं हूँ – मेरे भीतर अगर कोई अदीब या अदीब जैसा कुछ था तो उसे बाहर लाने Mayank Awasthihttps://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-50826030778137714812014-05-12T10:57:32.960+05:302014-05-12T10:57:32.960+05:30हादी साहब !! हम इक दूजे के इतने नज़दीक हैं कि मुझे ...हादी साहब !! हम इक दूजे के इतने नज़दीक हैं कि मुझे अभिवादन की औपचारिकता भी भार लगती है – <br />किसी की आहटें दिल मे सदा महसूस करता हूँ <br />दयारे ग़ैर मे कोई शनासा बन के रहता है -- <br />ये दुनिया मेरे लिये दयारे गैर सही लेकिन एक शनासा हादी जावेद मेरे दिल के इतना निकट है कि मुझे सम्झ नहीं आता कि वो मेरा आईना है या मैं उसकी परछाईं हूँ – मेरे भीतर अगर कोई अदीब या अदीब जैसा कुछ था तो उसे बाहर लाने Mayank Awasthihttps://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-57022170911350364742014-05-12T10:51:41.286+05:302014-05-12T10:51:41.286+05:30राजेन्द्र स्वर्णकार –भाई !! हम आपके इज़हार और आपके ...राजेन्द्र स्वर्णकार –भाई !! हम आपके इज़हार और आपके सुरीले गले के बहुत पुराने फैन हैं और जब आपका पस्न्दीदा साहित्यकार आपकी गज़ल को प्सन्द करें तो एक गहरी आश्वस्ति और सुख की अनुभूति होती है आपने इस ग़ज़ल को पसन्द किया ऐसी ही अनुभूति मुझे हो रही है !!! साभार –मयंक Mayank Awasthihttps://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-1548538318513947772014-05-12T10:49:32.383+05:302014-05-12T10:49:32.383+05:30धर्मेन्द्र भाई !! बहुत बहुत आभार !! फिलहाल आपके &q...धर्मेन्द्र भाई !! बहुत बहुत आभार !! फिलहाल आपके " संकलन गज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर" का आनन्द ले रहा हूँ !! Mayank Awasthihttps://www.blogger.com/profile/16120430247055660504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-22445338219413608592014-05-05T22:00:55.136+05:302014-05-05T22:00:55.136+05:30सितारा एक भी बाकी बचा क्या
निगोड़ी धूप खा जाती है ...सितारा एक भी बाकी बचा क्या<br />निगोड़ी धूप खा जाती है क्या-क्या<br /><br />सब इक बहरे-फ़ना के बुलबुले हैं<br />किसी की इब्तिदा क्या इन्तिहा क्या<br /><br />ख़िरद इक नूर में ज़म हो रही है<br />झरोखा आगही का खुल गया क्या<br /><br />तअल्लुक आन पहुँचा खामुशी तक<br />“ यहाँ से बन्द है हर रास्ता क्या”<br /><br />बहुत शर्माओगे यह जान कर तुम<br />तुम्हारे साथ ख्वाबों में किया क्या<br /><br />बरहना था Hadi Javedhttps://www.blogger.com/profile/14977680896918498806noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-77983257882726460792014-05-03T13:45:46.249+05:302014-05-03T13:45:46.249+05:30☆★☆★☆
जज़ीरे सर उठा कर हँस रहे हैं
ज़रा सोचो ...<b> </b> <br /><b> </b> <br /><b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.in" rel="nofollow">☆★☆★☆</a></b><br /><b> </b> <br /><b> </b> <br /><b> जज़ीरे सर उठा कर हँस रहे हैं<br />ज़रा सोचो समन्दर कर सका क्या</b> <br />वाह...वाऽह…! बेहतरीन शे'र !!<br /><br />वैसे पूरी ग़ज़ल बेमिसाल है हर शे'र कोट करने को मन करता है...<br /><b> </b> <br />इस शरारती शे'र को साथ ले जाना चाहूंगा-<br /><b> बहुत Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4162253741448977385.post-25956701516183195852014-05-01T11:45:19.940+05:302014-05-01T11:45:19.940+05:30इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मयंक भाई को बहुत बहुत बधाई।इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मयंक भाई को बहुत बहुत बधाई।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com