ज्योति कलश छलके
हुए गुलाबी, लाल सुनहरे
रँग दल बादल के
ज्योति कलश छलके
घर आँगन वन उपवन-उपवन
करती ज्योति अमृत के सिञ्चन
मङ्गल घट ढल के
ज्योति कलश छलके
पात-पात बिरवा हरियाला
धरती का मुख हुआ उजाला
सच सपने कल के
ज्योति कलश छलके
ऊषा ने आँचल फैलाया
फैली सुख की शीतल छाया
नीचे आँचल के
ज्योति कलश छलके
ज्योति यशोदा धरती मैय्या
नील गगन गोपाल कन्हैय्या
श्यामल छवि झलके
ज्योति कलश छलके
अम्बर कुमकुम कण बरसाये
फूल पँखुड़ियों पर मुस्काये
बिन्दु तुहिन जल के
ज्योति कलश छलके
पण्डित नरेन्द्र शर्मा
1913-1989
सम्पर्क - आप की सुपुत्री आ. लावण्या शाह
ॐ
जवाब देंहटाएंभाई श्री नवीन जी ' साहित्यम ' पत्रिका के बारे में आज ही पता चला।
मेरी असीम शुभकामनाएं एवं बधाई।
पूज्य पापाजी की कालजयी कविताओं को पत्रिका में सम्मिलित हुआ देख
बड़ी प्रसन्नता हुई।
पंडित नरेंद्र शर्मा शताब्दी समारोह मुम्बई में २६ और २७ फ़रवरी को संपन्न हुआ
मैं भी वहां थी। मेरा व्यक्तव्य आप यहां देख पायेंगें।
http://www.lavanyashah.com/2014/04/blog-post.html
---देखिये कुछ भाव त्रुटियाँ हैं जो प्रायः सप्रयास रचित कविता में आजाती हैं....जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए....
जवाब देंहटाएं---- रँग क्रिया के रूप में सही होता है ..यहाँ कर्ता है अतः रंग होना चाहिए ....
--- मङ्गल घट ढल के ..क्या घट... ढलते हैं..?
---- ऊषा ने आँचल फैलाया
फैली सुख की शीतल छाया
नीचे आँचल के ----- अब ऊषा के आँचल के नीचे छाया क्यों होगी ..कैसे ..
------बिन्दु तुहिन जल के ......तुहिन तो होते ही जल के बिंदु हैं ,,,पुनरावृत्ति की क्या आवश्यकता है ...