मधु के दिन मेरे गए बीत!
मैँने भी मधु के गीत रचे,
मेरे मन की मधुशाला मेँ
यदि होँ मेरे कुछ गीत बचे,
तो उन गीतोँ के कारण ही,
कुछ और निभा ले प्रीत-रीत!
मधु के दिन मेरे गए बीत!
मधु कहाँ, यहाँ गङ्गा-जल है!
प्रभु के चरणोँ मे रखने को,
जीवन का पका हुआ फल है!
मन हार चुका मधुसदन को,
मैँ भूल चुका मधु-भरे गीत!
मधु के दिन मेरे गए बीत!
वह गुपचुप प्रेम-भरीँ बातेँ,
यह मुरझाया मन भूल चुका
वन-कुञ्जोँ की गुञ्जित रातेँ
मधु-कलषोँ के छलकाने की
हो गई , मधुर-बेला व्यतीत!
मधु के दिन मेरे गए बीत!
पण्डित नरेन्द्र शर्मा
1913-1989
सम्पर्क - आप की सुपुत्री आ. लावण्या शाह
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