जब सूरज दद्दू, नदियाँ पी जाते हैं
तटबन्धों के मिलने के दिन आते हैं
रातें ही राहों को सियाह नहीं करतीं
दिन भी कैसे-कैसे दिन दिखलाते हैं
बची-खुची ख़ुशबू ही चमन को मिलती है
कली चटखते ही भँवरे आ जाते हैं
नाज़ुक दिल वाले अक्सर होते हैं शार्प
आहट मिलते ही पञ्छी उड़ जाते हैं
दिल जिद पर आमादा हो तो बह्स न कर
बच्चों को बच्चों की तरह समझाते हैं
हम तो गहरी नींद में होते हैं अक्सर
पापा हौले-हौले सर सहलाते हैं
और किसी दुनिया के वशिन्दे हैं हम
याँ तो सैर-सपाटा करने आते हैं
दम-घोंटू माहौल में ही जीता है सच
सब को सब थोड़े ही झुठला पाते हैं
दिन में ख़्वाब सजाना बन्द करो साहब
आँखों के नीचे धब्बे पड़ जाते हैं
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
जब सूरज भाऊ नदियाँ पी जाते हैं !! हम तो ऐसे पढेंगे !! दद्दू होटल हमारे तो हमारा पानी क्यों पी जाते !! हा हा हा हा !!! नवीन भाई मज़ाक बर्तरफ़ –लेकिन एक खास मकसद से ऐसा लिखना रहा हूँ –पाकिस्तानी शाइर रशीद कैसरानी ने सूरज को तानाशाही का प्रतीक मान कर इस सिम्बल से बहुत कुछ कहाँ है –याद आ गया इसलिये भाऊ शब्द इस्तेमाल किया !!!
जवाब देंहटाएंरातें ही राहों को सियाह नहीं करतीं
दिन भी कैसे-कैसे दिन दिखलाते हैं
इस शेर ने मुहावरों का अनूठा प्र्योग किया है और बेहतरीन अर्थ निकाले हैं !!
बची-खुची ख़ुशबू ही चमन को मिलती है
कली चटखते ही भँवरे आ जाते हैं
यह सच है !! जैसे रसोइया अगर शार्प नहीं है तो बचा खुचा खाता है और पार्टी देने वाला बहुत बार चावल दाल खा कर संतोष कर लेता है !!
हम तो गहरी नींद में होते हैं अक्सर
पापा हौले-हौले सर सहलाते हैं
इस शेर पर एक ख्याल ये सूझा !! कैसा है !!! मंज़र बना कि नहीं !!??
हम तो गहरी नींद में होते हैं अक्सर
आँसू हौले-हौले सर सहलाते हैं
और किसी दुनिया के वशिन्दे हैं हम
याँ तो सैर-सपाटा करने आते हैं
राइट सर राइट !! बस एक रात का सफर है क्या गिला कीजै
मुसाफिरों को गनीमत है ये सराय बहुत –शिकेब
इस गज़ल के लिये आपको बधाई !!! –मयंक
जब सूरज दद्दू, नदियाँ पी जाते हैं
जवाब देंहटाएंतटबन्धों के मिलने के दिन आते हैं////===== प्रतीक का प्रयोग अद्वितीय है।
रातें ही राहों को सियाह नहीं करतीं
दिन भी कैसे-कैसे दिन दिखलाते हैं// -------- बहुत बेह्तरीन
बची-खुची ख़ुशबू ही चमन को मिलती है
कली चटखते ही भँवरे आ जाते हैं // -------- :)
नाज़ुक दिल वाले अक्सर होते हैं शार्प
आहट मिलते ही पञ्छी उड़ जाते हैं
दिल जिद पर आमादा हो तो बह्स न कर
बच्चों को बच्चों की तरह समझाते हैं
हम तो गहरी नींद में होते हैं अक्सर
पापा हौले-हौले सर सहलाते हैं
और किसी दुनिया के वशिन्दे हैं हम
याँ तो सैर-सपाटा करने आते हैं
दम-घोंटू माहौल में ही जीता है सच
सब को सब थोड़े ही झुठला पाते हैं
दिन में ख़्वाब सजाना बन्द करो साहब
आँखों के नीचे धब्बे पड़ जाते हैं
सभी अश'आर बेहतरीन हैं बहुत बहुत बधाईयाँ।