ज्यों मंदिर के द्वार से, जूता चोरी होय
सिक्के यूँ मत फेंकिए, प्रभु पर हे जजमान
सौ का नोट चढ़ाइए, तब होगा कल्यान
फल, गुड़, मेवा, दूध, घी, गए गटक भगवान
फौरन पत्थर हो गए, माँगा जब वरदान
ताजी रोटी सी लगी, हलवाहे को नार
मक्खन जैसी छोकरी, बोला राजकुमार
संविधान शिव सा हुआ, दे देकर वरदान
राह मोहिनी की तकें, हम किस्से सच मान
जो समाज को श्राप है, गोरी को वरदान
ज्यादा अंग गरीब हैं, थोड़े से धनवान
बेटा बोला बाप से, फर्ज करो निज पूर्ण
सब धन मेरे नाम कर, खाओ कायम चूर्ण
ठंढा बिल्कुल व्यर्थ है, जैसे ठंढा सूप
जुबाँ जले उबला पिए, ऐसा तेरा रूप
:- धर्मेन्द्र कुमार सज्जन
9418004272
जवाब देंहटाएंफल, गुड़, मेवा, दूध, घी, गए गटक भगवान
फौरन पत्थर हो गए, माँगा जब वरदान
----- भैया तुमने भी तो पत्थर पर ही ये सब चढ़ाया था ..भगवान समझ कर ..अब शिकायत क्यूं..
अर्थपूर्ण श्रेष्ठ दोहे हैं
वर्तमान में रचे जाने वाले दोहों की तरह मात्र तुकबंदी वाले दोहे नहीं
बधाई भाई धर्मेन्द्र कुमार सज्जन जी !