गर तू बग़ावती है, ज़मीं-आसमान
छोड़
ये क्या कि पाँव-पाँव सफ़र मोतियों के
सम्त
हिम्मत के साथ बिफरे समन्दर में जान
छोड़
ख़ुशबू के सिलसिले दे या आहट की राह
बख़्श
तू चाहता है तुझसे मिलें, तो निशान
छोड़
बुझते ही प्यास तुझको भुला देंगे
अहले-दश्त
थोड़ी-सी तश्नगी का सफ़र दरमियान छोड़
अहले-दश्त – जङ्गल के लोग
मैं चाहता हूँ अपना सफ़र अपनी खोज-बीन
इस बार मेरे सर पे खुला आसमान छोड़
क्यों रोकता है मुझको इशारों से
बार-बार
सच सुनना चाहता है तो मेरी ज़बान छोड़
मुझको पता चले तो यहाँ कौन है मेरा
आ सामने तो मेरी तरफ,
खुल के बान छोड़
:- तुफ़ैल चतुर्वेदी
बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु
मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
aapne aap me lajabab gazal hai .......kamaal......lagbhag 10 saal pahle ek misra v.bhaisab se suna tha ....langar samet naavo badha badvaan khool....mahoul me ghutan hai bahout aasman khool...............wah wah wah
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है तुफ़ैल जी ने। उन्हें बारंबार बधाई।
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