30 अप्रैल 2014

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे - पण्डित नरेन्द्र शर्मा

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?
आज से दो प्रेम योगीअब वियोगी ही रहेङ्गे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?

सत्य हो यदिकल्प की भी कल्पना करधीर बांधूँ,
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लियेयह योग साधूँ!
जानता हूँअब न हम तुम मिल सकेङ्गे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?

आयेगा मधुमास फिर भीआयेगी श्यामल घटा घिर,
आँख भर कर देख लो अबमैं न आऊँगा कभी फिर!
प्राण तन से बिछुड़ कर कैसे रहेङ्गे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?

अब न रोनाव्यर्थ होगाहर घड़ी आँसू बहाना,
आज से अपने वियोगीहृदय को हँसना-सिखाना,
अब न हँसने के लियेहम तुम मिलेङ्गे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?

आज से हम तुम गिनेङ्गे एक ही नभ के सितारे
दूर होङ्गे पर सदा कोज्यों नदी के दो किनारे
सिन्धुतट पर भी न दो जो मिल सकेङ्गे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?

तट नदी केभग्न उर केदो विभागों के सदृश हैं,
चीर जिनकोविश्व की गति बह रही हैवे विवश है!
आज अथ-इति पर न पथ मेंमिल सकेङ्गे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?

यदि मुझे उस पार का भी मिलन का विश्वास होता,
सच कहूँगामैं नहीं असहाय या निरुपाय होता,
किन्तु क्या अब स्वप्न में भी मिल सकेङ्गे?
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?

आज तक किस का हुआ सच स्वप्नजिसने स्वप्न देखा?
कल्पना के मृदुल कर से मिटी किसकी भाग्यरेखा?
अब कहाँ सम्भव कि हम फिर मिल सकेङ्गे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?

आह! अन्तिम रात वहबैठी रहीं तुम पास मेरे,
शीश काँधे पर धरेघन कुन्तलों से गात घेरे,
क्षीण स्वर में था कहा, "अब कब मिलेङ्गे ?"
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?

"कब मिलेङ्गे "पूछ्ता मैंविश्व से जब विरह कातर,
"कब मिलेङ्गे "गूँजते प्रतिध्वनि-निनादित व्योम सागर,
"कब मिलेङ्गे " - प्रश्न ; उत्तर  - "कब मिलेङ्गे "!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेङ्गे ?


पण्डित नरेन्द्र शर्मा 
1913-1989
सम्पर्क - आप की सुपुत्री आ. लावण्या शाह 

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