न
मन्दिर में सनम होते न मस्जिद में ख़ुदा होता
हमीं
से ये तमाशा है न हम होते तो क्या होता
न ऐसी
मञ्ज़िलें होतीं, न ऐसा रासता होता
सँभल
कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेर-ए-पा होता
आलम - दुनिया,
ज़ेर-ए-पा
- क़दमों के नीचे
घटा
छाती, बहार आती, तुम्हारा तज़्किरा होता
फिर
उस के बाद गुल खिलते कि ज़ख़्मेदिल हरा होता
तज़्किरा - यादें
ज़माने
को तो बस मश्क़ेसितम से लुत्फ़ लेना है
निशाने
पर न हम होते तो कोई दूसरा होता
मश्क़ेसितम - सितम का
अभ्यास
[किसी पर सितम
ढा कर मज़े लेना या किसी पर सितम होता देख कर मज़े लेना]
तिरे
शानेकरम की लाज रख ली ग़म के मारों ने
न
होता ग़म जो इस दुनिया में, हर बन्दा ख़ुदा होता
मुसीबत
बन गये हैं अब तो ये साँसों के दो तिनके
जला
था जब तो पूरा आशियाना जल गया होता
हमें
तो डूबना ही था ये हसरत रह गयी दिल में
किनारे
आप होते और सफ़ीना डूबता होता
अरे
ओ! जीते-जी दर्देदुहाई देने वाले सुन
तुझे
हम सब्र कर लेते अगर मर के जुदा होता
बुला
कर तुम ने महफ़िल में हमें ग़ैरों से उठवाया
हमीं
ख़ुद उठ गये होते, इशारा कर दिया होता
तेरे
अहबाब तुझ से मिल के फिर मायूस लौट आये
तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी, कुछ तो कहा होता
:-
नौशाद अली
[1940-2006]
बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222
1222
न मन्दिर में सनम होते न मस्जिद में ख़ुदा होता - नौशाद अली
जवाब देंहटाएं--- मंदिर में सनम होते हैं ..ईश्वर नहीं होता और मस्जिद में तो खुदा होता ही है वहां सनम नहीं हो सकता .....वाह क्या बात है गहराई से सोचिये ...
मुसीबत बन गये हैं अब तो ये साँसों के दो तिनके
जवाब देंहटाएंजला था जब तो पूरा आशियाना जल गया होता
बहुत सुन्दर !! नौशाद साहब के गज़ल पहली बार पढी !! उन्हें सिर्फ संगीतज्ञ के रूप मे जानता था !!!