सूर तुलसी की तरह ग़ालिब भी मुझको है अज़ीज़
शेर हों या छन्द, हर इक फ़न से मुझ को प्यार है
जब मैं ग़ज़लें पेश कर रहा होता हूँ तो छन्द प्रेमी सकते में आ जाते हैं और जब छंदों के चरण चाँप रहा होता हूँ तो कुछ और तरह की बातें ही मेरे कानों तक पहुँचने लगती हैं, ये बातें कहने वाले ख़ुद ग़ज़ल या छंद के कितने क़रीब हैं, वो एक अलग मसअला है :)। अपने सनेहियों की ऐसी शंकाओं के समाधान के लिये ही मैंने कभी उक्त शेर कहा था। ख़ैर.......
वो कहते हैं न कि जब-जब जो-जो होना है तब-तब सो-सो होता है। मेरे छन्द सहकर्मियों को याद होगा -
पिछले कई महीनों से मैं १६ मात्रा वाले ७ प्रकार के छंदों को ले कर एक प्रस्तुति देने का प्रयास कर रहा था, पर माँ शारदे की आज्ञा अब हुई है। आप लोगों को याद होगा ऐसी ही एक प्रस्तुति पहले मैं ३० मात्रा वाले ६ प्रकार के छंदों के साथ दे चुका हूँ। तो लीजिये एक और प्रयास आप के दरबार में हाज़िर है, उम्मीद करता हूँ पास होने लायक नंबर तो आप लोग मुझे दे ही देंगे :) पहले रचना और फिर उस के बाद छंद विधान:-
पिछले कई महीनों से मैं १६ मात्रा वाले ७ प्रकार के छंदों को ले कर एक प्रस्तुति देने का प्रयास कर रहा था, पर माँ शारदे की आज्ञा अब हुई है। आप लोगों को याद होगा ऐसी ही एक प्रस्तुति पहले मैं ३० मात्रा वाले ६ प्रकार के छंदों के साथ दे चुका हूँ। तो लीजिये एक और प्रयास आप के दरबार में हाज़िर है, उम्मीद करता हूँ पास होने लायक नंबर तो आप लोग मुझे दे ही देंगे :) पहले रचना और फिर उस के बाद छंद विधान:-
गर्मी के मारे थे बेकल।
बारिश ले कर
आई दलदल।।
शरद गुलाबी रंग सुहाया।
फिर सर्दी ने बदन
जमाया।।
ये ऐसा क्रम जो नहीं टले।
बस अपने ही
अनुसार चले।।
पूँजीपति हो या, तंगहाल।
ऋतुएँ करतीं किस का ख़याल।।
इसलिए सोच न मेरे यार।
जो मिले बस कर
ले स्वीकार।
हो तुझे जब जैसा आभास।
ऐश कर लुत्फ़ उठा
बिंदास।
हर छन्द चार चरण वाला ही रहेगा, यहाँ रचना को बड़ी न करने के उद्देश्य से चंद पंक्तियों में ही विभिन्न छंदों को बाँध कर उदाहरण देने का प्रयास किया है। दूसरी बात यहाँ कृति-चमत्कृति से अधिक शिल्प-उदाहरण पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। आशा करता हूँ सुधी जन समझने का प्रयास करेंगे।
छंदविधान
[1]
सिंह विलोकित छंद –
चार चरण, सम मात्रिक छंद,
चरणांत 1-2
लघु-गुरु,
ला ला ला ला धुन पर चल कर अंत में लय तोड़ना
श्रेयस्कर
ये ऐसा क्रम जो नहीं टले
'क्र' संयुक्ताक्षर है इसलिए एक ही मात्रा गिनी जाएगी
[2]
पद्धरि छंद –
चार चरण, सम मात्रिक छंद,
यति १० - ६ पर या ८ - ८ पर
चरणांत जगण 1-2-1 लघु गुरु लघु,
ला ला ला ला धुन पर चल कर अंत में लय तोड़ना
श्रेयस्कर
पूँजीपति हो या, तंगहाल
२२११ २ २ [१० मात्रा पर यति] २१२१ [६ मात्रा पर यति] = १६ मात्रा, अंत में लघु गुरु लघु
ऋतुएँ करतीं किस का ख़याल
[3]
श्रंगार छंद –
चार चरण, सम मात्रिक छंद, चरणान्त
में गुरु लघु 2-1,
रगण या 2-1-2 पदभार ला ल ला से शुरुआत श्रेयस्कर
इसलिए सोच न मेरे यार
1112 21 1 22 21
यहाँ 'इसलिए' 212 यानि लालला की ध्वनि उत्पन्न कर रहा है
यहाँ 'इसलिए' 212 यानि लालला की ध्वनि उत्पन्न कर रहा है
[4]
चौपाई – चार चरण, सम मात्रिक छंद,
चरणान्त
में दो गुरु 2 या एक गुरु 2 + दो लघु 11, या चार लघु 1111
ला ला ला ला लय श्रेयस्कर
गर्मी के मारे थे बेकल
२२ २ २२ २ २११ = १६ मात्रा, अंत में गुरु लघु लघु २११
बारिश ले कर आई दलदल
२११ २ ११ २२ ११११ = १६ मात्रा, अंत में चार लघु ११११
शरद गुलाबी रंग सुहाया
१११ १२२ २१ १२२ = १६ मात्रा, अंत में गुरु गुरु २२
फिर सर्दी ने बदन जमाया
[5]
अरिल्ल छंद –
चार चरण, सम मात्रिक छंद,
चरणान्त में भगण 211 या यगण 122
ला ला ला ला लय श्रेयस्कर
गर्मी के मारे थे बेकल
२२ २ २२ २ २११ = १६ मात्रा, अंत में गुरु लघु लघु २११
फिर सर्दी ने बदन जमाया
[6]
अड़िल्ल छंद –
चार चरण, सम मात्रिक छंद,
चौपाई
जैसा ही, चरणान्त में दो लघु 11 या दो गुरु 22
ला ला ला ला लय श्रेयस्कर
गर्मी के मारे थे बेकल
२२ २ २२ २ २११ = १६ मात्रा, अंत में लघु लघु ११
बारिश ले कर आई दलदल
२११ २ ११ २२ ११११ = १६ मात्रा, अंत में दो लघु ११
शरद गुलाबी रंग सुहाया
१११ १२२ २१ १२२ = १६ मात्रा, अंत में गुरु गुरु २२
[7] पादाकुलक छंद – चार चरण, सम मात्रिक छंद, चार-चार
मात्राओं के चार चतुष्कल / चौकल
ला ला ला ला लय ही श्रेयस्कर
बारिश ले कर आई दलदल
ला ला ला ला २ २ २ २ धुन इस तरह भी बाँधी जा सकती
है
1 – ल ला ल ला ला १२ १२ २ लिखा पढ़ा कर / के
2 – ला ल ला ल ला २१ २१ २ बाँट बाँट कर / के
3 – ल ल ला ल ल ला ११२ ११२ अपना अपना
4 – ला ल ल ला ल ल २११ २११ आनन फानन
५ - लल लल लल लल ११ ११ ११ ११ उठ कर चल अब६ - ललल ललल लल १११ १११ ११ सँभल सँभल कर
वग़ैरह
संबन्धित छंद की सांगोपांग आवश्यक्ता के
अनुसार ही लय / पाद संयोजन करना चाहिये
निज मति अनुसार प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। मानवीय भूलों की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। यदि आप में से किसी को इस पोस्ट में कुछ त्रुटि दिखाई पड़े, तो सुधरवाने की कृपा करें। एक और बात समझ में आई कि तुलसी दास जी ने अपनी रामायण में चौपाइयों के साथ-साथ १६ मात्रा वाले अन्य छंदों का प्रयोग भी भरपूर किया है, जिन्हें हम अब तक चौपाई ही समझते आए हैं।
इस परिचर्चा में आप सभी से अपने बहुमूल्य सुविचार रखने हेतु सविनय निवेदन
गेयता के प्रेरक हैं छन्द...
जवाब देंहटाएं१६ मात्रा वाले ७ छंद ! वाह भाईजी, वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ही श्रमसाध्य प्रयास हुआ है. वस्तुतः १६ मात्राओं के नाम पर मन में झट से चौपाई छंद का ही नाम आता है.
१६ मात्राओं को लेकर नव-हस्ताक्षरों द्वारा रचनाएँ आसानी से की जाती हैं.
एक संशय. छंद नाम श्रंगार छंद है या शृंगार छंद है ?
यह इसलिए भी पूछ रहा हूँ कि शृंगार को श्रंगार लिखने की एक असहज परिपाटी चल पड़ी है. ऑनलाइ टाइपिंग के कारण भी ऐसी विवशता होती है कभी-कभी.
एक व्यवस्थित प्रयास के लिये हार्दिक धन्यवाद. विश्वास है, काव्य/छंद प्रेमी आपके प्रस्तुत पोस्ट से भरपूर लाभ उठायेंगे.
श्रृंगार सही शब्द है आद. । सभी पादाकुलक छंद चौपाई में गिने जा सकते हैं, लेकिन सभी चौपाई छंद पादाकुलक नहीं मानी जा सकती आद. । सादर
हटाएंआदरणीय, सुन्दर जानकारी देने की कोशिश है। साधुवाद। इन छन्दों के बारे में और स्पष्टता से निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
हटाएंचौपाई छन्द:
https://www.facebook.com/groups/3181642221885185/permalink/3591367070912696/
पदपादाकुलक:
https://www.facebook.com/groups/3181642221885185/permalink/3601271669922236/
श्रृंगार:
https://www.facebook.com/groups/3181642221885185/permalink/3614915561891180/
पद्धरि:
https://www.facebook.com/groups/3181642221885185/permalink/3617596511623085/
सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
जवाब देंहटाएं१६ मात्रा वाले सारे छंद एक ही जगह। बहुत अच्छा काम कर रहे हैं नवीन जी। ये पोस्ट आने वाले समय में संदर्भ का काम करेगी। बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसोलह मात्रा वाले छंद चौपाई से अलग हटकर भी होते है...विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार!!
जवाब देंहटाएंछंद की बहुत अच्छी जानकारी दी है |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सार्थक जानकारी देती प्रस्तुति,,बधाई
जवाब देंहटाएंrecent post: बात न करो,
आपकी यह पोस्ट बहुत लाभदायक है ..आभार
जवाब देंहटाएंचौपाई को लेकर इक संशय है मन में ....हमेशा हम पढ़ते रहे हैं कि यह चार चरण वाला छंद है ..लेकिन कथन की साम्यता दो चरणों में दिखाई देती है (...ऐसा और छंदों में भी होता है कोई बात नहीं )
तुलसी की रामचरित मानस में कुछ स्थानों पर यह दो चरण वाला ही प्रतीत होता है दोहे से दोहे के बीच चरणों की संख्या गिनने पर 18 चरण हैं जबकि होना चाहिए 16 या 20 ...
जैसे सुन्दरकाण्ड में दोहा संख्या16 से 17 तथा 42 व् 43 के बीच यह स्थिति है तो चौपाई को दो चरणों वाला क्यों नहीं माना जाता
आदरणीय सौरभ जी आप की बात सही है ये श्रंगार और शृंगार का लोचा अक्सर हो जाता है, आप सही वाले को ही पढ़ने की कृपा करें, आभार
जवाब देंहटाएंसीकर राजस्थान से अध्यापिका वंदना जी ने बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न हमारे सामने रख दिया है। मैं जल्द ही इस को देख कर वापस आता हूँ।
जवाब देंहटाएंवैसे हर स्थिति में चौपाई चार चरणों वाला छन्द ही हैं।
आज कल कुछ कमेंट्स स्पेम में जाने लगे हैं, पता नहीं क्यूँ? वंदना जी का कमेन्ट भी स्पेम में था - अभी अभी NO-SPAM किया तब यहाँ दिखाई पड़ा।
वंदना जी यहाँ मेरे पास पुस्तक तो नहीं पर मैंने ऑनलाइन गीताप्रेस गोरखपुर वालों द्वारा उपलब्ध कराया गया सुंदर कांड [PDF] पद के देखा आप की बात सही है।
जवाब देंहटाएंफिर भी चौपाई चरण चार चरण वाला ही होता है।
इस विषय में मैं एक और पहलू लेना चाहूँगा और बाकी मित्रों से भी सहभागिता का निवेदन है
तुलसीदास ने जो लिखा, क्या वह यूँ का त्यूँ आया?
तुलसीदास जैसे कवि से ऐसी भूल संभव तो नहीं लगती।
एक और उदाहरण
कनक कोटि विचित्र मणि कृति सुंदरायतना घना
26 मात्रा गीतिका छन्द
चहु हट्ट हट्ट से ले कर बाकी तीनों चरण 28 मात्रा हरिगीतिका छन्द
इस विषय पर किए गए वार्तालाप को गीताप्रेस गोरखपुर वाले कंप्लीटली डिसकरेज कर देते हैं....
खैर अपने लिए चौपाई छन्द चार चरण वाला :)
प्रिय सर,
हटाएंतुलसीदास जी ने सवैया, घनाक्षरी छंदों में दो-दो पंक्तियों का तुक लिया है, जो ग़लत है
जबकि भक्तिकाल और रीतिकाल के अन्य कवियों ने चार पंक्ति का तुकांत लिया है
तुलसीदास के दोहे में कई जगह मानक के अनुरूप मात्राएं नहीं हैं।(यह बात तुलसीदास नामक पुस्तक में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कही है)
इसके अतिरिक्त गीता प्रेस ने कई जगह छपाई में गलती की है जो अक्षम्य है।
सबसे महत्वपूर्ण बात की तुलसीदास जी के रामचरितमानस की 10 प्रकार की पांडुलिपियाँ प्राप्त होती हैं जिसमें अनेक प्रकार के अंतर हैं, मूल कौन है कहना मुश्किल है (स्रोत उदयभानु सिंह तुलसी काव्यमिमांसा)
सबसे बड़ी बात कि गाजीपुर के एक कवि हैं तुलसीदास जिनकी दोहावली और श्री तुलसीदास जी की दोहावली में अधिकांश दोहे समान हैं।
आप लोग इस भ्रम को दूर करने में सहयोग करें
सत्यशील राम त्रिपाठी, गोरखपुर
-------मेरे अनुसार ' श्रृंगार ' सही शब्द है ..
जवाब देंहटाएं---चौपाई----- नाम क्यों ...
---यह भ्रम प्राय: उत्पन्न होता है ---- वास्तव में चौपाई ... १६-१६ मात्राओं की चार पंक्तियों वाला छंद है जिनमे दो-दो चरण आपस में सम तुकांत होते हैं चारों चरण नहीं ---( पहला-दूसरा एक सम तुकांत ---एवं तीसरा चौथा अन्य सम तुकांत ) यथा ...
रघुकुल तिलक जोरि दोउ(=दुइ)हाथा, =१७(=१६) (--इस प्रकार की प्रिंटिंग अशुद्धियों के कारण तुलसीदास जी की रचना में मात्रा दोष लगता है है नहीं ...)
मुदित मातु पद नायउ माथा | =१६
दीन्ह असीस लाइ उर लीन्हे, =१६
भूषन बसन निछावरि कीन्हे || =१६ --
...यदि उपरोक्त प्रकार से लिखा जाय तो भ्रम नहीं होगा ....मानस में दो-दो चरण एक साथ क्रमिक भाव में लिखा होने से यह दो चरणों वाला छंद प्रतीत होता है...
प्रणाम बंधु,
जवाब देंहटाएंवास्तव में यह शब्द शृंगार है न कि श्रंगार। एक महत्वपूर्ण बात जहाँ तक मेरी समझ है वह ये है कि शृंगार कोई छंद नही काव्य रस है।
बहुत सुन्दर जानकारी हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुन्दर जानकारी। बधाई।
जवाब देंहटाएंसोलह मात्राओं के छन्दों और गहराई से समझने के लिए निम्न लिंकों को देख सकते हैं।
चौपाई छन्द:
https://www.facebook.com/groups/3181642221885185/permalink/3591367070912696/
पदपादाकुलक:
https://www.facebook.com/groups/3181642221885185/permalink/3601271669922236/
श्रृंगार:
https://www.facebook.com/groups/3181642221885185/permalink/3614915561891180/
पद्धरि:
https://www.facebook.com/groups/3181642221885185/permalink/3617596511623085/
पादाकुलक छंद के अंतर्गत क्र 2 में दी गई जानकारी सही नहीं। बाँट बाँट कर.. इसमें शुरुआत 21 21 से हो रहा है जो चौकल के विपरीत है।
जवाब देंहटाएंअचानक ही अरिल्ल छंद के विधान की खोज में यहाँ पहुँच गई। चौपाई सम नए छंदों से परिचय हुआ। छंद शास्त्री धन्यवाद व साधुवाद के पात्र हैं जिनके सद्प्रयास के कारण हम जैसे नौसिखिए कुछ नया जान व समझ पाते हैं।
जवाब देंहटाएंएक चर्चा यहाँ शृंगार शब्द को लेकर होती दिखी। मैं संस्कृत विद्यार्थी होने के नाते स्पष्टीकरण के माध्यम से हस्तक्षेप करना चाहती हूँ।
श्+ ऋ = शृ (मेरे कीबोर्ड के अनुसार) यह संयुक्त वर्ण बनेगा जो शृंगार में पूर्व में प्रयुक्त हुआ है। यह शुद्ध है।
जबकि यदि हम श्रृंगार लिखेंगे तो यह अशुद्ध होगा क्योंकि हम
श्+र् = श्र अथवा श्+ र्+ ृ = श्रृ लिखते या टाइप करते समय अनावश्यक रूप से श् के साथ र् का संयोजन कर रहे होते हैं। जो कि सर्वथा अशुद्ध है।
कंप्यूटर में अलग-अलग फोंट में शृंगार शब्द अलग-अलग प्रकार से टाइप किया जाता है। किंतु यदि वर्ण संयोजन गलत होगा तो श्रंगार या श्रृंगार यह अशुद्ध शब्द लिख जाएगा।
इस सामान्य बहुप्रचलित त्रुटि को दूर करने के उद्देश्य से ही एन सी आर टी की संस्कृत पुस्तकों में शृगाल एवं शृंगार जैसे शब्द बहुतायत में प्राप्त होते हैं।