उँगली पे उठाय लिया गिरिराज, प्रबुद्ध, प्रवीण प्रशासक हो।
तुम कालिय नाग के नाथनहार - सचेतक, तत्व-विचारक हो।
कुबजा अरु द्रौपदि लाज रखी - तुम सत्य समाज सुधारक हो।
तुम ही तुम ही तुम ही तुम ही तुम ही तुम ही अधिनायक हो।।
[दुर्मिल सवैया]
प्रेम का पाठ पढ़ाया हमें अरु भक्ति का भाव सिखाते रहे हो।
जीवन की महिमा हमको मुरली की धुनों में सुनाते रहे हो।
सभ्य 'नवीन' समाज बने इस कारण चीर चुराते रहे हो।
गौ-कुल के हित साधन को खुद माखन चोर कहाते रहे हो॥
[मत्तगयन्द सवैया]
माखन से धन को भी कमाएँ कमाल का मन्त्र सिखाया हमें।
कंस से लोहा लिया तुमने जनतंत्र का मन्त्र सुझाया हमें।
वक़्त के साथ चले हर वक़्त यों वक़्त का मोल बताया हमें।
प्रेम सिवाय विकल्प नहीं यह पाठ तुम्हीं ने पढ़ाया हमें॥
[मालिनी सवैया]
सखियों के सखा गउओं के गुपाल गुवालों के मीत कहाते रहे।
ललिता के मनोहर जाम्बुवती सँग भी तुम रास रचाते रहे।
सब से सब की सब भाँति सुचारू सदैव 'नवीन' निभाते रहे।
समता के लिए तुम जन्म लिया समभाव की ज्योति जगाते रहे॥
[दुर्मिल सवैया]
कुबजा अरु द्रौपदि लाज रखी - तुम सत्य समाज सुधारक हो।
तुम ही तुम ही तुम ही तुम ही तुम ही तुम ही अधिनायक हो।।
[दुर्मिल सवैया]
प्रेम का पाठ पढ़ाया हमें अरु भक्ति का भाव सिखाते रहे हो।
जीवन की महिमा हमको मुरली की धुनों में सुनाते रहे हो।
सभ्य 'नवीन' समाज बने इस कारण चीर चुराते रहे हो।
गौ-कुल के हित साधन को खुद माखन चोर कहाते रहे हो॥
[मत्तगयन्द सवैया]
माखन से धन को भी कमाएँ कमाल का मन्त्र सिखाया हमें।
कंस से लोहा लिया तुमने जनतंत्र का मन्त्र सुझाया हमें।
वक़्त के साथ चले हर वक़्त यों वक़्त का मोल बताया हमें।
प्रेम सिवाय विकल्प नहीं यह पाठ तुम्हीं ने पढ़ाया हमें॥
[मालिनी सवैया]
सखियों के सखा गउओं के गुपाल गुवालों के मीत कहाते रहे।
ललिता के मनोहर जाम्बुवती सँग भी तुम रास रचाते रहे।
सब से सब की सब भाँति सुचारू सदैव 'नवीन' निभाते रहे।
समता के लिए तुम जन्म लिया समभाव की ज्योति जगाते रहे॥
[दुर्मिल सवैया]
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंपढ़ा कर मज़ा आ गया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
अनुपम भक्ति प्रवाह।
जवाब देंहटाएं