हिन्दीगजल - इस बात को लेकर दुखी है इन दिनों अन्तःकरण - संजीव प्रभाकर

 


इस बात को लेकर दुखी है इन दिनों अन्तःकरण 

उसकी बहुत अवहेलना करने लगा है आचरण

 

गम्भीरता संलग्नता प्रतिबद्धता जिनमें नहीं

वे आजकल आदर्श हैंवे आजकल हैं उद्धरण

 

सहमी हुई दुबकी हुई रहने लगी है शिष्टता

कुछ इस तरह का इन दिनों है बन गया वातावरण

 

कैसे नहीं जायें ठगे इस बात से अनभिज्ञ हैं

निर्लज्जता ओढ़े हुए है आवरण पर आवरण

 

उन बिन्दुओं का आजकल औचित्य भी संदिग्ध है,

जिन बिन्दुओं पर उन दिनों अनसन हुआ था आमरण


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें