कृष्ण के छन्द
आज़ कुछ फुटकर छन्द। पहले तीन दुर्मिल सवैया :-
आज़ कुछ फुटकर छन्द। पहले तीन दुर्मिल सवैया :-
मन की सुन के मन मीत बने तब कैसे कहें तुम हो
बहरे।
पर बात का उत्तर देते नहीं यही बात हिया हलकान
करे।
सच में तुमको दिखते नहीं क्या अपने भगतों के
बुझे चहरे।
दिखते हैं तो मौन लगाए हो क्यूँ, जगदीश तो वो है जो पीर हरे।।
नव भाँति की भक्ति सुनी तो लगा इस जैसा जहान में
तत्व नहीं।
जसुधा की कराह सुनी तो लगा तुमरे दिल में अपनत्व
नहीं।
हर बार तुम्हारी ही बात रहे फिर तो नवधा का
महत्व नहीं।।
हर वक़्त यही दिल बोल रहा उन का ग़म क्या जो
झिंझोड़ गये।
हमरा अपराध नहीं कुछ भी, फिर भी सिर ठीकरा फोड़ गये।
उस राह सिवाय विकल्प नहीं जिस राह पे मोहन मोड़
गये।
अब उद्धव बीन बजाओ नहीं, हरि छोड़ गये, दिल तोड़
गये।।
दुर्मिल सवैया छन्द विधान -
आठ बार सगण - लघु लघु गुरु [112], वर्णिक छन्द।
सवैया में गुरु अक्षरों को कम से कम गिराना [लघु की तरह बोलना] चाहिये। मुश्किल है, मगर जितना भी सम्भव हो कोशिश ज़रूर ज़रूर करनी चाहिये। एक बात और, गुरु को लघु की तरह न बोलने के हाथ में छन्द-लावण्य को नज़रअंदाज़ करना भी उचित नहीं है। कमोबेश दाल में कितना नमक टाइप बात है। चारों चरण के अंत में समान तुक / क़ाफ़िया / अंत्यनुप्रास।
एक जलहरण घनाक्षरी छंद:-
माता को रुलाया तब धरती पे आये और
पैदा होते ही पिता को पानी में उतार दिया
दही-दूध-माखन को मिट्टी में मिलाया और
ख़ूब ही रुलाया उसे जिस ने भी प्यार दिया
भोरी-गोरी राधा रानी को तो छोड़ दिया और
काली-काली जाम्बुवती पर दिल वार दिया
एक भी सलीके वाला काम तुम से न हुआ
भक्त भरमाये और पापियों को तार दिया
जलहरण घनाक्षरी छंद विधान :-
जलहरण घनाक्षरी – 8 8 8 8 – अंत में लघु गुरु [12]
वर्णिक छन्द।
वर्णिक छन्द।
दो दोहे
द्वै
पस्से भर चून अरु,
बस चुल्लू भर आब।
फिर भी आटा गुंथ गया!!!!! पूछे कौन हिसाब?????
फिर भी आटा गुंथ गया!!!!! पूछे कौन हिसाब?????
द्वै - दो
पस्सा - हथेलियों का दौना
चून - पिसा हुआ गेंहू का चूर्ण [आटा]
आब - पानी
अक्षर
मेरा इष्ट है, शक्ति – शब्द-संधान।
गुर
सीखे वाल्मीकि से, ये मेरी पहिचान।।
और चलते चलते महाकवि बिहारी के एक दोहे से प्रेरणा लेते हुये एक सोरठा :-
भर
कर पूरा जोश, अब के वन चिल्ला उठा।
फिर
खो बैठा होश, अली, कली के मोह में।।
महाकवि बिहारी जी का दोहा - नहिं पराग, नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल। अली [भँवरा] कली ही सों बँध्यो, आगें कौन हवाल।।
सादर
नवीन सी. चतुर्वेदी
पेखें पंच पड़ोस के पूछें जेलर साब ।
जवाब देंहटाएंकब लटके घंटाल गुरु कब लटकाए कसाब ॥