लाख़ मतभेद रहें, पर मनभेद न हों,
भाई को हमेशा गले हँस के लगाइए|
लात मार दूर करें, दशमुख सा -अनुज,
दुश्मन को न्योत घर, कभी भी न लाइए|
भाई नहीं दुश्मन जो, इंच भर भूमि न दें,
नारि-अपमान कर, नाश न बुलाइए|
छल-छद्म, दाँव-पेंच, द्वंद-फंद अपना के
राज नीति का अखाड़ा घर न बनाइये||
[सलिल जी का छन्द और शब्दों की कारीगरी न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता| 'इंच भर भूमि'
और 'दशमुख सा अनुज' को इंगित कर के आपने 'राजनीति का अखाड़ा' वाली इस
पंक्ति को महाभारत तथा 'रामायण' काल की घटनाओं से जोड़ दिया है]
जिसका जो जोड़ीदार, करे उसे वही प्यार,
कभी फूल कभी खार, मन-मन भाया है|
पास आये सुख मिले, दूर जाये दुःख मिले,
साथ रहे पूर्ण करे, जिया हरषाया है|
चाह-वाह-आह-दाह, नेह नदिया अथाह,
कल-कल हो प्रवाह, डूबा-उतराया है|
गर्दभ कहे गधी से, आँख मूँद - कर - जोड़,
देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है||
[क्षृंगार रस में हास्य रस का तड़का, क्या बात है आचार्य जी| चाह, वाह, दाह, आह, अथाह.
प्रवाह जैसे शब्दों से आपने इस छन्द को जो अलंकृत किया है, भई वाह|
'आँख मूँद - कर - जोड़' वाला प्रयोग भी जबर्दस्त रहा]
शहनाई गूँज रही, नाच रहा मन मोर,
जल्दी से हल्दी लेकर, करी मनुहार है|
आकुल हैं-व्याकुल हैं, दोनों एक-दूजे बिन,
नया-नया प्रेम रंग, शीश पे सवार है|
चन्द्रमुखी, सूर्यमुखी, ज्वालामुखी रूप धरे,
सासू की समधन पे, जग बलिहार है|
गेंद जैसा या है ढोल, बन्ना तो है अनमोल,
बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है||
[हास्य रस के साथ साथ इस छन्द में अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है| इस के सिवाय 'माँ' शब्द का एक नया पर्यायवाची शब्द भी पढ़ने में आया है इस छन्द में - 'सासू की समधन']
ये तो सब जानते हैं, जान के न मानते हैं,
जग है असार पर, सार बिन चले ना|
मायका सभी को लगे - भला, किन्तु ये है सच,
काम किसी का भी, ससुरार बिन चले ना|
मनुहार इनकार, इकरार इज़हार,
भुजहार, अभिसार, प्यार बिन चले ना|
रागी हो, विरागी हो या हतभागी बड़भागी,
दुनिया में काम कभी, 'नार' बिन चले ना||
[श्लेष अलंकार वाली इस विशेष पंक्ति पर आप के द्वारा 'नार' शब्द के तीन अर्थ लिए गये हैं -
ज्ञान-पानी और स्त्री| आचार्य जी के ज्ञान के बारे में क्या कहा जाए, हम सभी जानते हैं|
खुद हमें भी पता नहीं था कि अब तक कुल जमा २८ कवि / कवियत्री इस मंच की शोभा बन चुके हैं| कल गिना तो मालुम पड़ा| आज के दौर में, 'छन्द साहित्य' जैसे कम रुचिकर विषय पर, जुम्मा जुम्मा ६ महीनों के अल्प काल में २८ कवि / कवियत्री, ३३ चौपाइयाँ, १०६ दोहे, ३६ कुण्डलिया और अब तक २० घनाक्षरी छन्दों के अलावा ४२००+ हिट्स के साथ आप लोगों ने जो चमत्कार किया है - उस की प्रशंसा के लिए शब्द नहीं मिल रहे| ये आप लोगों के सक्रिय सहयोग के कारण ही सम्भव हुआ है|
हमारे जो साथी किसी कारण वश वर्तमान में हम से दूर हैं, हम दिल से उन का आभार प्रकट करते हैं| मसलन, हमें याद है - इस मंच की सब से पहली प्रस्तुति - जब कंचन बनारसी भाई उर्फ उमा शंकर चतुर्वेदी जी द्वारा दी गई, तो मंच ने किस अंदाज़ में खुशी मनाई थी| कंचन बनारसी भाई, यह मंच आप का सदैव आभारी रहेगा| जिन लोगों ने समय समय पर मंच का मार्गदर्शन किया, उन के लिए भी मंच कृतज्ञ है| आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आप लोग इस मंच को नित नई ऊँचाइयाँ प्रदान करने में सदैव आगे रहेंगे|
अगली पोस्ट में पढ़ते हैं विशेष पंक्ति वाले छन्द पर जादू करने वाले अगले जादूगर धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन 'को|
जय माँ शारदे!