साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
पिछला हफ़्ता तो पूरा का पूरा दिवाली के मूड वाला हफ़्ता रहा| रियल लाइफ हो या वर्च्युअल, जहाँ देखो बस दिवाली ही दिवाली| शुभकामनाओं का आदान प्रदान, पटाखे और मिठाइयाँ| उस के बाद भाई दूज, बहनों का स्पेशल त्यौहार| इस सब के चलते हम ने पोस्ट्स को एक बारगी होल्ड पर रखा और इसी दरम्यान अष्ट विनायक दर्शन को निकल लिए|
पिछले हफ्ते हमने पढ़े थे शेखर चतुर्वेदी के, हल्की-फुल्की चुटकियाँ लेते हास्य रस आधारित हरिगीतिका छंद, और आज पढेंगे धर्मेन्द्र भाई को| धर्मेन्द्र भाई ने श्रृंगार रस, बात्सल्य रस के अलावा एक अन्य छंद के माध्यम से काव्य को विज्ञान का आधार बनाने की वकालत भी की है| तो आइये पढ़ते हैं उन छंदों को :-
आ सामने तेरे, कसौटी स्वर्ण भी चढ़ता नहीं|
चाँदी करे अनुरोध, मुझको, सामने जाना नहीं||
हिमखण्ड, हर हीरा हुआ, हत-प्राण, हीरक-हार है|
हिमखण्ड, हर हीरा हुआ, हत-प्राण, हीरक-हार है|
जब राह भूले तू, वही दिन, हाट का त्यौहार है|१|
हर कल्पना की भावना बन, तू सदा सजती रहे|
हर कल्पना की भावना बन, तू सदा सजती रहे|
संगीत गर तू ही हमारे - गीत का बनती रहे||
अनुरोध मेरा मानकर, सँग - सँग सदा चलती रहे|
अनुरोध मेरा मानकर, सँग - सँग सदा चलती रहे|
तो ज़िंदगी भर, गीत तेरे, लेखनी लिखती रहे|२|
मुस्कान तेरी, इक कठिन सप्ताह का - रविवार है|
यह तोतली वाणी, मुझे, स-शरीर देती - तार है||
तुझ बिन मिले जो भी खुशी, वह भार है, बेकार है|
मुस्कान तेरी, इक कठिन सप्ताह का - रविवार है|
यह तोतली वाणी, मुझे, स-शरीर देती - तार है||
तुझ बिन मिले जो भी खुशी, वह भार है, बेकार है|
तू साथ हो तो ज़िंदगी भर, ज़िंदगी - त्यौहार है|३|
अंधा हुआ जो ज्ञान, सब मिट जायगा, संसार से|
अंधा हुआ जो ज्ञान, सब मिट जायगा, संसार से|
यदि नाव खेना ज्ञान की, तो, भाव की पतवार से||
हम ज्ञान को कर दें सजग, कर - कल्पना, सम्भाव्य की|
हम ज्ञान को कर दें सजग, कर - कल्पना, सम्भाव्य की|
विज्ञान के आगे चले, ये हो कसौटी - काव्य की|४|
विज्ञान के आगे चले - ये हो कसौटी काव्य की| वाह क्या अद्भुत आव्हान है| कवि की कल्पना इन शब्दों के साथ और भी अधिक मुखर हो उठी है| सिवाय इस के - 'मुस्कान तेरी एक कठिन सप्ताह का रविवार है' - के माध्यम से धर्मेन्द्र भाई ने आयोजन में एक अलग तरह की मिसाल पेश की है| इन छंदों में बहुत कुछ है कोट करने लायक, आप खुद एन्जॉय करें और रचनाधर्मी का दिल खोल कर उत्साह वर्धन करें| धर्मेन्द्र भाई ने गणेश विवाह पर भी कुछ छंद भेजे हैं, जिन्हें ठाले-बैठे पर वातायन के अंतर्गत आने वाले दिनों में पढ़ा जा सकता है| तो आनंद लीजिये आप इन छंदों का, टिप्पणियां करने में पीछे न रहें, हम ज़ल्द ही हाज़िर होते हैं एक और नयी पोस्ट के साथ|
जय माँ शारदे!
धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन' |
बहुत ही सुन्दर और सार्थक छंद हैं सज्जन जी के ! उनकी लेखनी अद्भुत रूप से तेजस्वी एवं ओजपूर्ण है ! उन्हें बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंbahut badhiya chhand .....sundar prastutikaran
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुन्दर , भावपूर्ण , मनोहारी छंद रचे हैं भाई धर्मेन्द्र जी ने ...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनवीन जी ! आपका तो बार-बार आभार इतने सुन्दर साहित्यिक अनुष्ठान के लिए ..
अदभुद लेखन |बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
Bahut hi sunder - बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंMadhuram
आ सामने तेरे, कसौटी स्वर्ण भी चढ़ता नहीं|
जवाब देंहटाएंचाँदी करे अनुरोध, मुझको, सामने जाना नहीं||
हिमखण्ड, हर हीरा हुआ, हत-प्राण, हीरक-हार है|
जब राह भूले तू, वही दिन, हाट का त्यौहार है|१|
Wah ! Wah ! Dharmendra Bhai !!
Bahut khoob chhand likhe hain aapne !!
धर्मेन्द्र भाई
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ! यह स्वर्ण चांदी हीरे … ये कहां सारा हमारा सामान ले'कर बैठ गए ;)
अच्छे छंद हैं … लेकिन आपसे इनसे भी बेहतर की उम्मीद रहती है …
साधना जी, अना जी, आशा जी, सुरेंद्र जी, मधुरम जी, शेखर जी और राजेन्द्र भाई आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया। @राजेन्द्र भाई, सही कहा आपने अभी हरिगीतिका छंद ढंग से हत्थे चढ़ा नहीं है। छंद निभाने के चक्कर में भाव हाथ से निकल जाते हैं। खैर आगे और बेहतर करने की कोशिश जारी रहेगी, नवीन भाई के मार्गदर्शन में।
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र कुमार सिंह
"अंधा हुआ जो ज्ञान, सब मिट जायगा, संसार से|
जवाब देंहटाएंयदि नाव खेना ज्ञान की, तो, भाव की पतवार से||
हम ज्ञान को कर दें सजग,कर-कल्पना,सम्भाव्य की|
विज्ञान के आगे चले, ये हो कसौटी - काव्य की|४|"
अत्यंत अर्थपूर्ण एवं सुंदर सृजन । बधाई ।
चारों हरिगीतिका छंद कहाँ और शिल्प की दृष्टि से बेहतरीन कहे हैं धर्मेन्द्र भाई ! आपकी लेखनी पर सच में माँ शारदा की भरपूर कृपा है, आपको कोटिश: साधुवाद !
जवाब देंहटाएंयदि नाव खेना ज्ञान की, तो, भाव की पतवार से||
जवाब देंहटाएंअमूल्य बात!
सभी छंद बेहद सुन्दर हैं!
धर्मेन्द्र जी को हार्दिक बधाई!
हर कल्पना की भावना बन, तू सदा सजती रहे|
जवाब देंहटाएंसंगीत गर तू ही हमारे - गीत का बनती रहे||
( तारीफ क्या हो कामते दिलदार की शिकेब
तजसीम कर दिया है किसी ने अलाप को -शिकेब जलाली
अनुरोध मेरा मानकर, सँग - सँग सदा चलती रहे|
तो ज़िंदगी भर, गीत तेरे, लेखनी लिखती रहे|२|
तुम अगर साथ देने का वादा करो --मैं यूँ ही मस्त नगमें सुनाता रहूँ
मुस्कान तेरी, इक कठिन सप्ताह का - रविवार है|
यह तोतली वाणी, मुझे, स-शरीर देती - तार है||
मुंरज़िर हूँ मै उस घड़ी का बहुत
आ के पीछे से ताss करे कोई
eternal melodies याद आती हैं आपकी पोस्ट को पढ कर--गहरी सोच और गहरी अभिव्यक्ति --काव्य और बौद्धिकता का अनूठा संगम !! बहुत बहुत बधाई !!
सुशीला जी, योगराज जी, अनुपमा जी और मयंक जी आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।
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