गुलाल होली के सूखे रंगों
को कहा जाता है, जो रंगीन सूखा चूर्ण होता है, जिसे होली के त्योहार में गालों पर या माथे पर टीका लगाने के काम आता है। इसके
अलावा इसका प्रयोग रंगोली बनाने में भी किया जाता है। बिना गुलाल के होली के रंग फीके
ही रह जाते हैं। यह कहना उचित ही होगा कि जहां गीली होली के लिये पानी के रंग होते
हैं, वहीं सूखी होली भी गुलालों के संग कुछ कम नहीं जमती है।
यह रसायनों द्वारा व हर्बल, दोनों ही प्रकार से बनाया जाता है।
कई वर्ष पूर्व तक मूल रूप से यह रंग वनस्पतियों से प्राप्त रंगों या उत्पादों,
फूलों और अन्य प्राकृतिक पदार्थों से ही इसका निर्माण हुआ करता था,
जिनमें रंगने की प्रवृत्ति होती थी। किन्तु समय के साथ इसमें बदलाव आया
और होली के ये रंग अब रसायनिक भी होते हैं और कुछ तेज़ रासायनिक पदार्थों से तैयार
किए जाते हैं व उन्हें अरारोट में मिलाकर तीखे व चटक रंग के गुलाल बनाये जाने लगे।
ये रासायनिक रंग हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते हैं, विशेष
तौर पर आँखों और त्वचा के लिए। इन्हीं सब समस्याओं ने फिर से हमें इधर कुछ वर्षों से
दोबारा प्राकृतिक रंगों / हर्बल गुलाल की ओर रुख़ करने को मजबूर कर दिया है। कई तरह
के हर्बल व जैविक गुलाल बाज़ारों में उपलब्ध होने लगे हैं। हर्बल गुलाल के कई लाभ होते
हैं। इनमें रसायनों का प्रयोग नहीं होने से न तो एलर्जी होती है न आंखों में जलन होती
है। ये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।
रासायनिक गुलाल
रंगों के पर्व होली में
लोग उत्साह से एक दूसरे को रंग लगाते हुए शुभकामनाएं देते हैं लेकिन कुछ रंग ऐसे होते
हैं जो सेहत को नुकसान पहुंचा कर शुभकामनाओं को अर्थहीन तथा रंग पर्व को बदरंग बना
देते हैं। मिलावटी रंगों के कारण होने वाला नुकसान कई बार घातक भी हो सकता है।
गुलाल बनाने के लिए कई
रसायनों का प्रयोग होता है। इनमें से कुछ रंग, उनमें प्रयुक्त
रसायन व उनका स्वास्थ्य पर प्रभाव इस प्रकार से है।
काला रंग 'लेड ऑक्साइड' से बनता है, जिससे
गुर्दे को हानि व 'लर्निंग डिसेबिलिटी' हो सकती है।हरा रंग 'कॉपर सल्फेट' से बनता है, जिससे
आंखों में एलर्जी, जलन व अस्थायी अंधता हो सकती है।बैंगनी रंग क्रोमियम आयोडाइड
से बनता है जिससे ब्रोंकियल दमा व एलर्जी हो सकते हैं। चमकीले / रूपहला रंग एल्युमिनियम
ब्रोमाइड से बनता है, जो कैंसर का कारक बन सकता है। नीला रंग प्रशियन ब्लू
नामक रसायन से बनता है जिससे त्वचा की एलर्जी और संक्रमण पैदा कर सकता है।लाल रंग मर्करी सल्फेट
से बनता है, इतना ज़हरीला होता है कि जिससे त्वचा का कैंसर व मेंटल
रिटार्डेशन संभव है।
रंगों की गुणवत्ता
सूखे गुलाल में एस्बेस्टस
या सिलिका मिलाई जाती है जिससे अस्थमा, त्वचा में सक्रंमण
और आंखों में जलन की शिकायत हो सकती है। गीले रंगों में आम तौर पर जेनशियन वायोलेट
मिलाया जाता है जिससे त्वचा का रंग प्रभावित हो सकता है और डर्मेटाइटिस की शिकायत हो
सकती है। इनके अलावा मिलावटी व रासायनिक घटिया रंगों में डीजल, क्रोमियम, आयोडिन, इंजन ऑयल,
और सीसे का पाउडर भी हो सकता है जिनसे सेहत को गंभीर नुकसान पहुंच सकता
है। इससे लोगों को चक्कर आता है, सिरदर्द और सांस की तकलीफ होने
लगती है। जानकारी या जागरूकता के अभाव में अक्सर दुकानदार, ख़ास
कर छोटे दुकानदार इस बारे में ध्यान नहीं देते कि रंगों की गुणवत्ता कैसी है। कभी तो
ये रंग उन डिब्बों में आते हैं जिन पर लिखा होता है केवल औद्योगिक उपयोग के लिए। ज़ाहिर
है कि ख़तरा इसमें भी है। होली के रंग लघु उद्योग के तहत आते हैं और लघु उद्योग के
लिए निर्धारित रैग्युलेशन और क्वालिटी चेक नहीं है।
हर्बल गुलाल
अन्य परंपरागत रासायनिक
रंगों की तुलना में हर्बल गुलाल ने सबसे ज़्यादा अपना रंग जमा रखा है। बाज़ार में हर्बल
सामग्रियों से बनाए गए सूखे रंग उपलब्ध हैं। त्वचा पर रासायनिक रंगों के दुष्प्रभाव
को देखते हुए आठ वर्ष पूर्व लखनऊ स्थित 'राष्ट्रीय वानस्पतिक
अनुसंधान केन्द्र' ने ऐसे हर्बल गुलाल की जरूरत महसूस की थी।
डा. वीरेन्द्र लाल कपूर ने होली के लिए विशेष रूप से हर्बल गुलाल तैयार किया था। इस
गुलाल की ख़ासियत है कि इसे न केवल त्वचा से आसानी से छुड़ाया जा सकता है बल्कि यह
दुष्प्रभावों से भी कोसो दूर रखता है। 'एन.बी.आर.आई. के वैज्ञानिक
बताते है यह गुलाल, इमली के बीज, बेल,
अनार के छिलके, यूकेलिप्टस की छाल, अमलतास की फली का गूदा, प्याज का ऊपरी छिल्का,
चुकंदर और हल्दी आदि वानस्पतिक पदार्थों से रंग तैयार करके उनको एक निश्चित
अनुपात में गंधकों और पाउडर के साथ मिलाकर लाल, पीला,
गुलाबी, हरा, भूरा,
नीला इत्यादि रंगों में हर्बल गुलाल तैयार किया जाता है।
तिहाड़ जेल की महिला कैदियों
ने भी गुलाब के फूल जैसी हर्बल सामग्रियों की मदद से रंग गुलाल बनाए हैं। तिहाड़ की
महिला कैदियों के साथ पिछले पंद्रह सालों से कार्यरत्त दिव्य ज्योति जागृति संस्थान
(डीजेजेएस) के प्रवक्ता विशालनंद ने बताया कि इस रंग में अरारोट पाउडर, खाने वाले रंग और प्राकृतिक सुगंध आदि का इस्तेमाल किया गया है और इनसे त्वचा
को कोई नुकसान नहीं होता।
मध्य प्रदेश के वन विभाग का ‘संजीवनी’ वनौषधि केंद्र ने होली के त्योहार के लिये इको फ्रेन्डली रंग तैयार किये हैं। इसे विभिन्न किस्म के फूलों, वनस्पतियों और अरारोट से तैयार किया जाता है। टेसू के फूलों तथा प्राकृतिक रंग और सुगंध के अद्भुत मेल से बने विशेष हर्बल गुलाल लाल, गुलाबी, पीले, केशरिया और क्रीम रंग में उपलब्ध है।
'पर्यावरण मित्र' हर्बल गुलाल की यह रंगबिरंगी सौगात भोपाल स्थित लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केन्द्र बरखेड़ा पठानी ने तैयार की है। यह केन्द्र मध्य प्रदेश राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ द्वारा संचालित है।
गुलाल
विंध्य हर्बल्स शृंखला के अंतर्गत तैयार हर्बल गुलाल प्राचीन परंपरागत वैदिक पद्यतियों से बनाया गया है जिन्हें तत्कालीन राजपरिवारों द्वारा उपयोग किया जाता था। हर्बल गुलाल के ज़रिये पारम्परिक राजसी तरीके से होली खेलने का आनंद अब आम लोग भी उठा सकेंगे। यह रंग प्रदूषण रहित है साथ ही आर्सेनिक, जस्ता, सीसा, कैडमियम, निकल तथा अभ्रक जैसे हानिकारक तत्वों से मुक्त है। इन रंगों को छुड़ाने में पानी का अपव्यय भी नहीं होगा जिससे पानी की बचत भी होगी। हर्बल गुलाल की यह ख़ासियत है कि शरीर पर इनके उपयोग से कोई विपरीत प्रभाव नहीं होता है।
प्राकृतिक रंग / हर्बल गुलाल बनाने की विधि
होली रंगों का त्योहार
है और इस मौके पर एक-दूसरे को रंग-गुलाल से सराबोर करना सबको अच्छा लगता है, लेकिन कई बार जाने-अनजाने में इस्तेमाल किए गए केमिकल युक्त रंग त्वचा पर विपरीत
प्रभाव छोड़ जाते हैं। ऐसे में होली को सुरक्षित बनाने के लिए फूल-पत्तियों और घरेलू
चीज़ों के इस्तेमाल से बनाए हर्बल रंगों व गुलाल से त्योहार मनाएं। हम घर पर बिल्कुल
प्राकृतिक तौर पर गुलाल के रंग तैयार कर सकते हैं। जो ख़ूबसूरत लाल-हरा, नीला-पीला, केसरिया-गुलाबी रंग का हो सकते हैं। होली
के ये प्राकृतिक रंग पूरी तरह सिर्फ़ सुरक्षित ही नहीं बल्कि चेहरे और त्वचा के लिए
भी लाभदायक माने जाते हैं। तभी तो यदि होली खेलते हुए गुलाल आँखों में भी चला भी जाए
तो आप आराम से होली खेलते रहिए और जब त्योहार का मज़ा पूरा हो जाए, तब आराम से घर जाकर आँखें धो लीजिए।
लाल गुलाल तैयार करने
की विधि
पिसा हुआ लाल चंदन जिसे रक्तचंदन या लाल चंदन भी कहा जाता है, ख़ूबसूरत लाल रंग का स्रोत है। साथ ही यह त्वचा के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद होता है और आमतौर पर फेस पैक आदि में भी इस्तेमाल किया जाता है। यह सूखा रंग गुलाल की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है तथा इनमें सूखे लाल गुड़हल के फूल को पीस कर मिला सकते हैं। इसके अलावा गीला लाल रंग बनाने के लिये चार चम्मच लाल चंदन पाउडर को पांच लीटर पानी में डालकर उबालें। इसे 20 लीटर पानी में मिलाकर तैयार किया जा सकता है।
गुलाल
इसके अलावा लाल गुलाब को सुखाकर पाउडर बना लें। इसकी मात्रा बढ़ाने के लिए आटा मिलाकर गुलाल के रूप में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
छाया में सुखाए गए गुड़हल या जवाकुसुम के फूलों के पाउडर से लाल रंग तैयार किया जा सकता है।
सिंदूरिया के ईंट से लाल बीजों को भी बतौर रंग या गुलाल इस्तेमाल किया जा सकता है।
लाल अनार के छिलकों / दानों को पानी में उबाल कर भी सुर्ख लाल रंग बनाया जा सकता है।
आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी पाउडर के साथ चुटकी भर चूना मिलाइए। फिर 10 लीटर पानी के घोल में इसे अच्छी तरह मिलाइए और आपका होली का रंग तैयार।
टमाटर और गाजर के रस को भी पानी में मिला कर रंग तैयार किया जा सकता है।
प्राकृतिक रूप से तैयार हरा गुलाल हरा सूखा रंग बनाने के लिए मेहँदी या हिना पाउडर, बिना आंवला व रीठा मिलाए, प्रयोग कर सकते हैं तथा इसमें बेसन या आटा भी मिला सकते हैं।
सूखी मेहंदी चेहरे पर रंग नहीं छोड़ती है और इसे ब्रश से आसानी से झाड़ कर साफ़ किया जा सकता है। अगर मेहंदी पाउडर लगाने के बाद चेहरा गीला भी हो जाए, तो भी बहुत हल्का रंग चढ़ेगा।
गीला हरा रंग बनाने के लिए दो लीटर पानी में दो चम्मच मेहंदी पाउडर डालकर अच्छी तरह से घोल लें, इसमें धनिया, पालक, पुदीना आदि की पत्तियों का पाउडर मिलाकर हरा रंग तैयार कर सकते हैं, पर इस रंग के दाग़ आसानी से नहीं छुटते। यह दीगर बात है कि यह रंग बालों के लिए बहुत लाभदायक (हर्बल कंडिशनर का काम) होता है।
गुलमोहर के पत्तियों को अच्छी तरह सुखा कर पीस लें और चमकदार प्राकृतिक हरा गुलाल तैयार किया जा सकता है।
गेहूँ की हरी बालियों को अच्छी तरह पीसकर गुलाल तैयार करें।
पालक, धनिया या पुदीने के पत्तियों को सुखाकर पीस लें और हरे गुलाल की तरह इस्तेमाल सकते हैं तथा पानी में मिलाकर गीला रंग तैयार किया जा सकता है।
गुलाल
गुलाबी / जामुनी रंग
एक किलो ग्राम चुकंदर
को कद्दूकस करके एक लीटर पानी में डालकर रात भर छोड़ दें। इससे गाढ़ा जामुनी रंग तैयार
हो जाएगा। फिर रंगीन पानी बनाने के लिए इस घोल में पानी मिलाकर होली का लुत्फ़ उठाइए।
पीला / नारंगी रंग
पीला सूखा रंग बनाने के
लिये दो चम्मच हल्दी पाउडर को पांच चम्मच बेसन में मिलाएं। हल्दी और बेसन वैसे भी त्वचा
के लिए काफ़ी गुणकारी होता है और आमतौर पर नहाने से पहले इसे उबटन की तरह इस्तेमाल
किया जाता है।
इसके अलावा गेंदे के फूल को सुखाकर उसके पाउडर से भी पीला रंग तैयार कर सकते हैं।
इसके अलावा, एक चम्मच हल्दी पाउडर को दो लीटर पानी में मिलाकर थोड़ी देर उबालें या पचास गेंदे के फूल दो लीटर पानी में मसलकर उबाल लें और रात भर छोड़ दें। संतरी रंग तैयार हो जाएगा।
चटक केसरिया गुलाल
पारंपरिक तौर पर भारत में यह चटक केसरिया गुलाल टेसू के फूलों से बनता है, जिसे पलाश भी कहा जाता है, होली के ख़ूबसूरत रंगों के परंपरागत स्रोत हैं। टेसू के फूलों को पानी में उबालकर रात भर के लिए पानी में भीगने के लिए छोड़ दीजिए, इससे संतरी रंग तैयार हो जाएगा और सुबह रंग का आनंद उठाइए। इस पानी में औषधिय गुण होते हैं। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण भी गोपियों के साथ टेसू के फूल से होली खेलते थे और इसका इस्तेमाल कई औषधियां बनाने में भी होता है।
चुटकी भर चंदन पाउडर 1 लीटर पानी में मिलाने पर 'केसरिया रंग' तैयार हो जाता है।
केसर की पत्तियों को कुछ समय के लिए 2 चम्मच पानी में भीगने के लिए छोड़ दें। फिर उन्हें पीस लें। अपने इच्छानुसार गाढ़ा रंग पाने के लिए धीरे-धीरे पानी मिलाएँ, ताकि ज़्यादा पानी से रंग फीका या हल्का न हो जाए। यह त्वचा के लिए अच्छा तो होता ही है साथ ही साथ बहुत महँगा भी होता है।
नीला रंग
नीले रंग का गुलाल तैयार करने के लिए 'जकरांदा के फूल' को सुखाकर पाउडर बना लें।
काला रंग
काले अंगूर के जूस को
पानी में मिलाएं या हल्दी पाउडर को थोड़े से बेकिंग सोडा के साथ मिलाकर कत्थई रंग तैयार
किया जा सकता है।
पर्यावरण के प्रति संवेदनशील कुछ संस्थाओं ने प्राकृतिक रंगों को पैकेटबंद कर के भी बेचना शुरू कर दिया है। इन्हीं में से एक संस्था है कल्पवृक्ष जिसके विषय में जानना और इनसे रंग ख़रीदना एक रोचक अनुभव हो सकता है।
जैविक गुलाल
बहुराष्ट्रीय कंपनी आर्गेनिक
इंडिया ने हर्बल गुलाल से एक क़दम आगे बढ़ते हुए बाज़ार में इस जैविक गुलाल को उतारा
है। यह गुलाल तुलसी और हल्दी के वृक्षों से बनाया गया है। आदिकाल से भारत में तुलसी
और हल्दी का औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। होली पर बाज़ार में रासायनिक
रंगों की भरमार रहती है। ये रंग हमारी त्वचा के लिए हानिकारक होते हैं। ऐसे में जैविक
गुलाल रासायनिक रंगों से बचने के बेहतर विकल्प हैं। जैविक गुलाल बनाने के लिए जिन औषधीय
पौधों का इस्तेमाल किया गया है, उन्हें जैविक उर्वरकों के
जरिए उगाया गया है। इस वजह से त्वचा पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। आर्गेनिक इंडिया
के एक विशेषज्ञ ने बताया कि जैविक गुलाल हरे और पीले, दो रंगों
में बनाए गए हैं। हरा गुलाल तुलसी की पत्तियों से और पीला गुलाल हल्दी से बनाया बनाया
गया है। जैविक गुलाल न सिर्फ़ त्वचा के लिए कंडीशनर का काम करता है, बल्कि इसके प्रयोग से त्वचा पर दाने भी नहीं निकलते। महत्त्वपूर्ण है कि लखनऊ
स्थित भारतीय विष विज्ञान संस्थान ने एक अध्ययन में पाया कि बाज़ार में मिलने वाले
गुलाल में हानिकारक क्रोमियम, निकिल और लेड जैसे तत्व मौजूद हैं।
[भारतकोष से साभार]
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