सवाल
एक बेटी ने ये
रो कर कोख से दी है सदा
मैं भी इक इंसान
हूँ, मेरा भी हामी है ख़ुदा
कब तलक निस्वानियत
का कोख में होगा क़िताल
बिन्त ए हव्वा
पूछती है आज तुम से इक सवाल
जब भी माँ की
कोख में होता है दूजी माँ का क़त्ल
आदमीयत काँप
उठती है, लरज़ जाता है अदल्
देखती हूँ रोज़
क़ुदरत के ये घर उजड़े हुए
ये अजन्मे जिस्म, ख़ाक ओ ख़ून में लिथड़े
हुए
देख कर ये सिलसिला
बेचैन हूँ, रंजूर हूँ
और फिर ये सोचने
के वास्ते मजबूर हूँ
काँप उठता है
जिगर इंसान के अंजाम पर
आदमीयत की हैं
लाशें बेटियों के नाम पर
कौन वो बदबख़्त
हैं, इन्साँ हैं या हैवान हैं
मारते हैं माओं
को, बदकार हैं, शैतान हैं
कोख में ही क़त्ल
का ये हुक्म किस ने दे दिया
जो अभी जन्मी
नहीं थी, जुर्म क्या उस ने किया
मर्द की ख़ातिर
सदा क़ुर्बानियाँ देती रही
माँ है आदमज़ाद
की, क्या जुर्म है उस का यही?
वो अज़ल से प्यार
की ममता की इक तस्वीर है
पासदार ए आदमीयत, ख़ल्क़ की तौक़ीर है
ये वो है जो
इस जहान ए हस्त का आधार है
कायनात ए बेकरां
का मरकज़ी किरदार है
सारे नबियों
को भी, वलियों को भी, और सादात को
सींचती है नौ
महीने ख़ून से हर ज़ात को
मामता की, प्यार की इख़लास की मूरत
है वो
क्यूं उसे तुम
क़त्ल करते हो? कोई आफ़त है वो?
जब से आई है
ज़मीं पर, क्या नहीं उस ने सहा
हर सितम सह कर
भी अब तक करती आई है वफ़ा
जब वो छोटी थी
तो उस को भाई की जूठन मिली
खिल न पाई जो
कभी, है एक वो ऐसी कली
उस को पैदा करने
का अहसां अगर उस पर किया
इस के बदले ज़िंदगी
का हक़ भी उस से ले लिया
इज़्ज़त ओ ग़ैरत, कभी लालच का लुक़मा बन
गई
बिक गई कोठों
पे, आतिश का निवाला बन गई
ये अज़ल से जाने
कितने दर्द सहती आई है
फिर भी बदक़िस्मत, अभागन, बेहया कहलाई है
मुस्तक़िल दी
है अज़ीअत, इक ख़ुशी उस को न दी
आख़िरश अब तुम
ने उस की ज़िंदगी भी छीन ली
क्यूं किसी औरत
की हस्ती तुम पे आख़िर बार है
एक औरत इस जहाँ
में प्यार है, बस प्यार है
ज़ंग ये दिल
पर तुम्हारे क्यूं लगी है आज भी
क्या तुम्हें
ख़ुद पर नहीं आती ज़रा सी लाज भी
ये तुम्हारी
माँ भी है, बेटी भी है, बीवी भी है
हमसफ़र भी, रहनुमा भी, और फिर फ़िदवी भी है
ख़ूबरू है, दिलरुबा है, है सरापा दिलकशी
औरतों के दम
से है दुनिया ए दिल की रौशनी
इक सुलगता कर्ब, इक दश्त ए बला रह जाएगा
हुस्न से ख़ाली
जहां में और क्या रह जाएगा
ऐ गुनहगारान
ए मादर, दुश्मन ए इंसानियत
ऐ इरम के क़ातिलो, ऐ पैकर ए शैतानियत
जिस को बेटी
जान कर यूं क़त्ल तुम करते रहे
ये नहीं सोचा? के जो बेटी है,
वो इक माँ भी है
आदमी के वास्ते
फिर माँ कहाँ से लाओगे
मार दोगे माओं
को तो तुम कहाँ से आओगे
---सुन्दर सवाल हैं....
जवाब देंहटाएंमाँ है आदमज़ाद की, क्या जुर्म है उस का यही?
मार दोगे माओं को तो तुम कहाँ से आओगे