खुली आँख
तो भोर ने, माँगा यही हिसाब !
पलकों
की दहलीज़ तक, आये
कितने ख्वाब !!
यारो
इस तालीम की , होती
नहीं किताब !
सीखो
किसी फ़क़ीर से , जीने
के आदाब !!
यार !
हमारे पास है , बहुत
बड़ी जागीर !
दिल
में उसकी याद है, अरु नैनों
में नीर !!
ज्यूँ
मुरझाई फस्ल में, जान
डाल दे खाद !
हरा–भरा
सा कर गयी ,मुझको तेरी याद !!
कब
देखे है इश्क़ ये , किसकी
है दहलीज़ !
शहज़ादे
के प्यार में , पागल
हुई कनीज़ !!
उर्दू
- हिन्दी को मिले , ऐसे
ठेकेदार !
जिनके
घर की आबरू , अंग्रेज़ी
अखबार !!
लिखा
तुम्हारी याद में , जब
हमने मज़मून !
काग़ज़
की भी आँख से , लगा
टपकने ख़ून !!
डोर
किसी के हाथ में ,उड़े किसी के संग !
जीवन
के आकाश में , हम हो
गये पतंग !!
कहाँ
गई वो लोरियां , कहाँ
गये वो चाव !
बच्चों
ने भी फाड़ दी , काग़ज़ वाली नाव !!
इक सच
बोला और फिर, देखा
ऐसा हाल !
कुछ
ने नज़रें फेर ली,कुछ की आँखें लाल !!
कहे
चाँद से चाँदनी, आवे
मोहे लाज !
जब
जमना की ओट से, मुझे
निहारे ताज !!
मुझको
यही सवाल बस , नौंचे है दिन-रात !
मैं तो
उस के साथ था , वो था
किसके साथ !!
लहजे
जिनके फूल से , चहरे भी ख़ुशरंग !
उनकी
बस्ती में मिली ,दिल की
गलियाँ तंग !!
तुम
ही इसमें लफ्ज़ हो , और
तुम्ही मफ़हूम !
तभी
हमारी नज़्म है , तुम
जैसी मासूम !!
दरिया
तेरा दायरा , बढ़ तो
गया ज़रूर !
मगर
किनारे हो गए , पहले
से भी दूर !!
स्टेशन
पर ही रह गये , हम
लहराते हाथ !
कोई
ख़ुद को छोड़कर , हमें
ले गया साथ !!
जो
अपने महबूब को, समझे
है सैयाद !
उसे
इश्क़ की क़ैद से, कर दीजे आज़ाद !!
ग़म, आँसू, तनहाइयाँ, चारों तरफ अज़ाब !
इन
कांटो के बीच भी , तेरी
याद गुलाब !!
ऐसे
मिलता था गले , जैसे
भरत मिलाप !
वही
गले का ले गया , गले
लगाकर नाप !!
तुम
पर लिखनी नज़्म थी , सोचा
था उन्वान !
इतने
में ही हो गया , काग़ज़
लहू लुहान !!
उर्दू - हिन्दी को मिले , ऐसे ठेकेदार !
जवाब देंहटाएंजिनके घर की आबरू , अंग्रेज़ी अखबार !!
---वह ..क्या बात है....
दरिया तेरा दायरा,
जवाब देंहटाएंबढ तो गया जरूर।
मगर किनारे हो गए,
पहले से भी दूर।।
....वाह