होली का ये लाल रंग लहू है किसी का याकि
द्वेष-सूर्य का ही उग्र बिखरा उजाला है
सूर्ख-पीत छाया हुआ नेह-शौर्य ही है याकि
क्रोध रश्मि-पुंज शिव नेत्र ने निकाला है
प्यार का ही बिखरा है रंग दिशा-विदिशा या
मंत्र- मोहिनी का जादू विधना ने डाला है
जाने अनजाने याकि प्रेम का प्रभूत पात्र
प्रेम रंग सराबोर विधि ने उछाला है ।
बहू अच्छा है लयात्मकता लिये हुए
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