पंथ होने दो
अपरिचित प्राण रहने दो अकेला
घेर ले छाया
अमा बन
आज कज्जल -अश्रुओं
में रिमझिमा ले यह घिरा घन
और होंगे नयन
सूखे
तिल बुझे औ 'पलक रूखे
आर्द्र चितवन
में यहाँ
शत विद्युतों
में दीप खेला !
पंथ होने दो
अपरिचित प्राण रहने दो अकेला !
अन्य होंगे चरण
हारे
और हैं जो लौटते
,दे शूल को संकल्प सारे
दुःखव्रती निर्माण
उन्मद
यह अमरता नापते
पद
बांध देंगे अंक
-संसृति
से तिमिर में
स्वर्ण बेला !
दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके
मिटे स्वर ,धूलि में खोयी निशानी
आज जिस पर प्रलय
विस्मित
मैं लगाती चल
रही नित
मोतियों की हाट
औ '
चिनगारियों का
एक मेला !
हास का मधु-दूत
भेजो
रोष की भ्रू
-भंगिमा पतझार को चाहो सहेजो !
ले मिलेगा उर
अचंचल
वेदना -जल ,स्वप्न शतदल
जान लो यह मिलन
एकाकी
विरह में है
अकेला !
पंथ होने दो
अपरिचित प्राण रहने दो अकेला
अनुपम कृति
जवाब देंहटाएंसुन्दर संयोजन !!
जवाब देंहटाएंadbhut
जवाब देंहटाएंकहे डाले
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