मग
आज अचानक भेंट भई दोउ दैन चह्यौ एक-एक कों चुक्का
इत
‘प्रीतम’प्यारे नें बाँह धरी, उत प्यारी नें मार्यौ अबीर कौ बुक्का
कर
छाँड़ि तबै दृग मींजें लगे, यों लगाय कें आपुनो तीर
पै तुक्का
अलि
गाल मसोस गई मुसकाय जमाय कें पीठ पे ज़ोर सों मुक्का
[सुन्दरी सवैया]
[सुन्दरी सवैया]
आई
हों दीठि [नज़र] बचाय सबै बिनु तेरे हहा मोहि चैन न आबै
बेगि
करौ जो करौ सो करौ, कर कें निबरौ तन मैन
सताबै
पै
इक बात सुनौ कवि ‘प्रीतम’ प्यार में ख़्वार की दैन न भाबै
होरी
खिलाउ तौ ऐसें खिलाउ कि मो सों कोउ कछु कैन न पाबै
[मत्तगयन्द सवैया]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें