होली के दोहे - सत्यनारायण सिंह

मस्ती तन-मन में जगे, आते ही मधुमास।
फागुन में होता सखी, यौवन का अहसास।।

लाल चुनर में यौवना, ढाये गजब कमाल।
होली पर गोरी करे, साजन सङ्ग धमाल।।

मस्ती छायी अङ्ग में, लगे अनङ्ग पलास।
फाग आग मन में लगी, इक प्रियतम की आस।।

आते ही मधुमास के, बहका सारा गाँव।
होली पर भारी पड़ा, इक गोरी का दाँव।।
 
यादें फिर मधुरिम हुयी, मधुरिम होली रङ्ग।

होली खेलूँ आज मैं, निज प्रियतम के सङ्ग।।

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