खोया-खोया चाँद भी, गया रूठकर आज |
तारा टूटे तार का, कहाँ बजाता साज ||
कहाँ बजाता साज, घने घुप अँधियारे में,
या खुद रोता आज, चाँद के चौबारे में,
जागा सारी रात, नहीं वह तारा सोया,
गया रूठ जब प्यार, चाँद सा खोया-खोया ||
~ फणीन्द्र
कुमार ‘भगत’
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